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पाष्टमान्त्ये सौम्यास्तत्फलाः रास्तदर्थहाः । नेन्दुर्लपान्त्यषष्ठाष्टः शेषस्थानौषपोषकाः ॥१७७॥
इतिग्रहस्वरूपम् । मों ज्ञेयं रूपवृत्तं लक्षणायुर्वयो त्रणम् । वर्णक्लेशदोषमानपूजारोग्यं शुभं सुखम् ॥१७८॥ धने मौक्तिकरत्नानि हेमाद्याः सप्तधातवः । पशुधान्याम्बरं क्रय्यं क्रयाणकगणो धनम् ॥१७९॥ सहजात्प्रशुभदासीभगिनीभ्रातपदादयः । सुहृत्सुखं दुःखमैत्री निविस्थानगमागमौ ॥१८०।। प्रामपिनुमा कृषिष्टीधृतिगेहिनीमहोषधयः । मुक्तिबिलप्रवेशादेशो लाभं च कुशलं च ॥१८॥ सुतान्मन्त्रसुतौ विद्याप्रतापशिष्यबुद्धयः । गर्भसन्धिः शुभद्रव्यं स्थानोपायनयादयः ॥१८२।।
६, ८, १२ वें गृहों में सौम्य ग्रह शुभ फल देते हैं और कर प्रह धन की हानि करते हैं अन्य स्थानों में ग्रह पुष्टिकारक होते हैं । १, १२, ६, वें स्थानों में चन्द्र शुभ नहीं होता है ॥१७७॥
लग्न स्थान से रूप, लक्षणा, आयु, अवस्था, वर्ण, क्लेश, दोष, मान, पूजा, आरोग्य, शभ, सुख इत्यादि विषयों का विचार किया जाता है ॥१७॥
धनभाव से मोती रत्न और सवर्ण आदि सात धातु पशु, धान्य, वस्त्र और अन्य भी क्रय वस्तुओं का विचार करना चाहिये ॥१७॥
'सहज स्थान से शुभ दासी, बहिन, भाई, पद आदि का विचार, सहभाव से मित्र, सुख, दुःख निधि का आना वा जाना, ग्राम-मात-पित ससा, कृषि, बाग, धैर्य, सी, महोषधि, भोग, बिलप्रवेश, आज्ञा, लाम और कुशल, का विचार करना चाहिये ॥१८०-८॥
*पनाम स्थान से पुत्र, मन्त्र, विद्या, प्रताप, शिष्य बुद्धि, गर्भ, सन्धि, शुभ द्रव्य की प्राप्ति, स्थानप्राप्ति, उपायसिद्धि, नीतिसफलता भादि का विचार करना चाहिये ।। १८२ ।
1. After this Al reads : इदानी द्वादशभावेभ्यो वपुषो (१नो ms) यस्य निर्णयः क्रियते तान् भावानाह। 2, पूज्या for पूजाA. 3. वृद्धि for निधि A A1 4 प्रवेशोदेशो for प्रवेशादेशो Bh, 5. सुतो for सुतो A. 6. गर्भः सन्धिः for गर्भसन्धिः A1