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( ३५) लग्ने गुरुनिधौ चन्द्रः छिद्रे शुक्रः पदे रविः। स्वमित्रे निजगेहादौ वाञ्छितेशो भवेन्नरः ॥१७॥ मूतों जीवः सितस्तुर्ये स्मरे सोमः पदे रविः । राहुणा सहितो लग्ने स प्रौढः पण्यभाजनम् ॥१७२॥ विद्या संजीवनी नाम शुक्रस्यैव न वाक्पतेः । अतोऽपि हेतुना जीवात्कविरेव बलाधिकः ॥१७३।। लग्नवित्ताधिपौ लग्ने दृष्टौ जीवहिमांशुना । नीचे वा शत्रलाभे वा कोटिशो वस्तु यच्छतः ॥१७४॥ यत्र यद्राशिपो राजा भवन्नुदेति तत्क्षणम् । तदाशिलमवाक्यानामुदयस्तत्र वत्सरे ॥१७॥ उच्चस्थो मुदितो राजा राशिपो लग्नतो' यदि । तत्र वर्षे शुभं कुर्यादुष्टो वापि गृहाधिपः ॥१७६॥ ___ यदि लग्न में गुरु, चतुर्थ स्थान में चन्द्रमा, अष्टम स्थान में शुक्र और पद स्थान में सूर्य हों और अपने मित्र या स्त्रगृह इत्यादि में स्थित हों तो स्वेच्छापूर्ति वाला होता है ॥ १७१ ।।
__ लग्न में गुरु, चतुर्थ स्थान में शक्र, सप्तम में चन्द्र और पदस्थान में सूर्य, राहु से युक्त लग्न हो तो वह मनुष्य प्रौढ़ पुण्यराशि वाला होता है ।। १७२ ॥
संजीवनी विद्या शुक्र के पास ही है, बृहस्पति के पास नहीं। इस लिये भी गुरु से शुक्र ही बल में अधिक है ।। १७३ ।।
लग्नेश और धनेश लग्न में रहें, गुरु तथा चन्द्रमा की दृष्टि उन पर रहे तो लग्नेश और धनेश नीच शत्र वा लाभ स्थान में भी रहें तो वे मनुष्य को करोडों वस्तुएँ देते हैं ।।१७४॥ ...
जिस किमी राशि का भी स्वामी वर्षेश होकर उस समय लग्न में हो तो उस वर्ष उम राशि वा लग्न वालों को लाभ होता है ।।१७।।
किसी राशि का स्वामी वर्षेश होकर यदि उच्च का हो उस - स्थ राशि का स्वामी दुष्ट हो, उस वर्ष में वह प्रसन्न होकर शुभ फल ही पाते हैं ।।१७६।। ___1. ०वाच्याना for वाक्याना० A. 2. राशिपौ for राशिपो A 3. लग्नपौ for लग्नतो A.