________________
मेवादिराशिरजमृगतुलाकर्कादिविधा वृत्या ॥१०॥ द्वित्रिनवद्विरसत्रिंशदांगो लमेथ' होगद्याः । होराधार्की परा चान्द्री विषमे व्यत्ययः समे ॥९१|| लमं तत्पञ्चनवमाद् द्रेष्काणा आदितो नवांशेशाः । स्वगृहादकांशेशास्त्रिंशांशाधिपतयस्तु यथा ॥१२॥ कुजयमशीवासिताः पञ्वेन्द्रियवसुमुनीन्द्रियांशानाम् । विषमेषु समर्केषु क्रमेण त्रिंशांशकाः कल्प्याः ॥९॥ तनुर्धनानुजमित्र ४ सुत ५ रिपु ६ गृहिणी ७ मृतिः ८
मेषादि राशियों के क्रम से मंगल, शुक्र, बुध, चन्द्र, रवि, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, शनि, गुरु ग्रहस्वामी हैं ॥१०॥
राशि का प्राधा तृतीयांश, नवमांश द्वादशांश, त्रिंशांश स्वगृह ये क्रम से होग, द्रेष्काण, नवांश, द्वादशांश, त्रिंशांश, गृह, षड्वर्ग होते है। उस में विषम राशि में पहले पन्द्रह अंश तक सूर्य की होरा, उस के बाद तीस अंश तक चन्द्रमा की होरा होती है। सम राशि में पहली चन्द्रमा की दूसरी सूर्य की होरा होती है ॥६॥
राशि के दश अंश तक वही राशि ट्रेष्कागा होता है। उसके बाद बीस अंश तक उस राशि का पाँचवाँ राशि ट्रेष्कागा होता है । उस के बाद तीस अंश तक उस राशि का नवम राशि रोकाया होता है। और पर (मेष, कर्क, तुल, मकर ) राशि में स्वराशि से ही नवमांश की गयाना होती है और स्थिर (वृष, सिंह, वृश्चिक कुम्भ) राशि में इसके नषम (मकर, मेष, कर्क, तुल ) से नवमांश की गणना होती है और द्विस्वभाव (मिथुन, कन्या, धनु, मीन ) राशि में इस के पश्चम । तुल. मकर, मेष, कर्क) से नवमांश की गणना होती है और द्वादशांश की गगाना स्वराशि से ही होती है ॥२॥
विषम राशियों में मंगल शनि, गुरु बुध शुक्र क्रम से ५वें, ५वें, य, ५वें त्रिशांशकों के स्वामी होते हैं। सम राशियों में विपरीत क्रम से त्रिशांशों के स्वामी होते हैं ॥३॥
सनु, धन, अनुज, मित्र, सुत, रिपु, गृहिणी, मृत्यु, धर्म, कम.
1. त्रिशतोगी च for त्रिंशद्वागो लग्नेऽथ Amb. 2. बसुमतीतिमाशान्ताः for वसुमुचीन्द्रियांशानाम् Amb. वसुमवीन्द्रियांशानाम् A. 3. समर्वेषु for समर्थेषु Amb.