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रविः कर्मणि लाभे च बुधचन्द्रौ कुजः क्षितौ । पश्चमे सप्तमे शुक्रः सुते जीयः शनिवृषे ॥४३॥ जायास्थानस्य भावा न भृगुसुतमृते नो शनि धर्मभावा नो सूर्य कर्मभावा न भृगुहिमकरौ लाभभावा भवन्ति । विद्यास्थानस्य भावा न गुरुमवनिजं नावनिस्थानभावा नेन्दु मृत्युन सर्वे न तनयपदं भागवश्वेतरश्मी ॥४४॥ रखी राजा शशी राज्ञी मङ्गलो मण्डलाधिपः शः कुमारो गुरुमन्त्री सितो नेता परौ" भृती ॥४५॥ प्राच्यादीशा रविसितकुजराहुयमेन्दुसौम्यवाग्यतयः । काले स्वमनः सत्वं वाङ्मतिसुखकामदुःखानि ॥४६॥
सूर्य दसवें में, बुध और चन्द्रमा ग्यारहवें में, मंगल लग्न में, शुक्र पक्रम वा सप्तम स्थान में, वृहस्पति पांचवे में और शनि वृष में हो तो भी उपर्युक्त बात जाननी चाहिये ॥४३॥
सप्तम स्थान में शुक्र नहीं रहे नो सप्तम भाव का दौर्बल्य कहना चाहिये । इस प्रकार हवें में शनि, १०वें में सूर्य, ११वें में शुक्र वा चन्द्रमा, विद्यास्थान में बृहस्पति, धनस्थान में मंगल, वें में चन्द्रमा, पुत्रस्थान में शुक्र वा सूर्य न रहें तो उन उन भावों की दुर्बलता कहनी चाहिये ॥४४॥
प्रहों में सूर्य राजा है । चन्द्रमा रानी है । मंगल मंडलेश है। बुध रामकुमार है । बृहस्पति मन्त्री है। शुक्र नेता है। अन्य दो शनि और राहु नौकर हैं ॥४५॥
सूर्य, शुक्र, मंगल, राहु, शनि, सोम, बुध और बृहस्पति क्रम से पूर्वादि दिशाओं के स्वामी होते हैं । वे समय पाकर मनोबल, सुबुद्धि, कामपूर्ति तथा सुख और दुख के देने वाले होते हैं ॥४६॥
1. भावे for लामे Amb. 2. Amb. reads सूर्यो for सूर्य। 3. This verse is missing in Bh. 4. मण्डलेश्वरः for मण्डलाधिप: B. b. परो for परौ Bh. 6. For सौ...तयः B. and Bh. read :-- बुधगुरुवगाद्याः। 7. वाग्भीत for वाममति Amb.