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पतिर्भुवो इस्तोयस्य शुक्रेन्द्र तेज से रविः । कुजश्व मरुतो राहुः शनिश्व नभसो गुरुः || ४७|| मांसत्वगुणां मज्जास्थां स्वामिनौ शनिभास्करौ । शोणिताधिपतिर्भीमः शुक्रस्याधिपतिर्भृगुः ४८ || बुधश्चैतन्यबुद्धीनां जीवो जीवाधिपो भवेत् । मनसश्चन्द्रमाः स्वामी भवेदेषां वपुः स्थितिः || ४९ ॥ सौरार्कक्षितिजाः शुष्काः सजलाविन्दु भार्गवौ । जीवज्ञावाश्रयवशाज्जल जाजलजौ स्मृतौ ||५०|| स्थानकालदृष्टिचेष्टादिग निसर्गबलानि षट् ।
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'आय सुहृत्स्वत्रिकोणनवांशोचवलानि षट ॥ ५१ ॥
पृथ्वी का स्वामी बुध है, जल के स्वामी शुक्र और चन्द्रमा हैं; सूर्य और मंगल तेज के स्वामी हैं; शनि और राहु वायु के और आकाश का स्वामी बृहस्पति है ॥४७॥
मांस, त्वचा और रोमों का स्वामी शनि हैं । मज्जा और हड्डियों का सूर्य स्वामी है । मंगल मांस का स्वामी है । शुक्र वीर्य का स्वामी है ||८||
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ज्ञान और बुद्धि का बुन स्वामी है । बृहस्पति जीव का स्वामी है । चन्द्रमा मन का स्वामी है । इस प्रकार ग्रहों की स्थिति शरीर में बतलाई गई हैं ||१६||
शनि, सूर्य और मंगल - ये तीन ग्रह नीरस होते हैं । चन्द्रमा और शुक्र सज्ल, गुरु और बुध अपने अपने आश्रय लेकर सजल और निर्जल होते हैं ॥५०॥
ग्रहों के स्थान, काल, दृष्टि, चेष्टा, दिग्, निसर्ग ये छ: बल 1 श्रायबल, सुहद्बल, स्वबल, त्रिकोणबल, नवांशवल और उच्चवल- ये छः बल भी होते हैं ||५१||
1. The text reads :- श्वास for मांस; सत्वयोम्लां for मांसत्वगुणां Bh. 2 एषा for एषां A, B. 3. For श्रयसुहृत्स्व. B. reads श्रद्येषु हृत्स्व० ; This line in missing in Bb.