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लग्नं पृथ्वी जलं लग्नं लग्नं तेजस्तथानिलः ।
व्योम परानन्दो लनं विश्वमयात्मकम् ||५||
म्लेच्छेषु विस्तृतं लग्नं कलिकालप्रभावतः ।
प्रभुप्रसादमासाद्य जैने धर्मेऽवतिष्ठते ॥६॥ *
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तुला तु (१) मुरूपयन्त्राणि तिष्ठन्ति किल ताजिके ।
षड्वर्ग शुद्धिमाख्यान्ति लमनिश्चय मिच्छताम् ॥७॥
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दिव्यज्ञानप्रतिच्छन्दं करणी केवलस्य च ।
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उपकाराय लोकानां लग्नशास्त्रं करोम्यहम् ||८||
लग्न ही पृथ्वी है, लग्न ही जल है, लग्न ही अग्नि और वायु है। लग्न ही आकाश है। ब्रह्माण्डस्वरूप लग्न ही परम आनन्द है ||५|| कलियुग के प्रभाव से लग्न म्लेच्छों में विस्तृत है । प्रभु की प्रसन्नता से जैन धर्म में भी विद्यमान है ||६||
ताजिक में भावों के जानने के लिये मुख्य साधन यन्त्र है । इन से लग्न का निश्चय करने वालों को छ: वर्गों का शुद्ध ज्ञान हो जाता है ॥७॥ दिव्यज्ञान तथा केवलज्ञान के कारणरूप इस लग्नशास्त्र को मैं उपकार के लिये बनाता हूँ ||८||
1. विश्रुतं for विस्तृतं Bh. 2. Sवतार्यते for ऽवतिष्ठते B., Bh. 3. The science of astrology and astronomy was to a greater extent prevalent amongst the Greeks in the days of Alexander the Great. This was due to the iron age, according to our author.
If the reading 'अवतार्यते' instead of 'अवतिष्ठते' is adopted it would suggest that this science is borrowed from foreigners, Greeks and the like who are called here Mlecchas.
The fact of the foreign influence in this branch of literature is disputed by some Indian scholars. 4. अभाव, for तुला तु A; गुलाव A ; वभाव B., शुभावेमुष्य for तुला तु मुख्य Bh. 6. ज्ञातृ for ज्ञान A1 6.0 च्छन्द: for • मन्दं Bh. 7. करणं for करणी A, A1, 8. धर्मशास्त्रं स्मराम्यहम for लग्नशास्त्रं करोम्यम् B.