________________
( २०८ )
LE
चन्द्रे बुधे कुजः षष्टिः पञ्चत्रिंशच्छतं रविः ।। ११२९ || गुरुश्च पञ्च पञ्चाशत् शुक्रोऽपि पञ्चसप्ततिः । पञ्चषष्टिः शनिर्वाच्यो राहुर्नवतिसंख्यकः ।। ११३० ॥ षशतान्यत्र जायन्ते ग्रहाः सर्वेऽपि पण्डिताः । ग्रहनक्षत्रराशीनां संख्यां संकल्य' चैकतः ||११३१ ॥ गुणितं ग्रहसंख्येन स्थाप्यं गशिद्वयं पृथक । अघोराशेस्ततो भागं गृह्णीया चैत्रजार्घतः | ११३२ ।। यत्र जायते लब्धं भसख्यां तत्र निक्षिपेत् ।
3
मेलयित्वा च तां संख्यां भागं गृह्णीत तत्क्षणात् ।। ११३३ ॥ उपरिभं धृते राशौ सम्यगङ्क प्रवर्तनः ।
3
यत्तत्र च भवेल्लब्धं संस्थाप्यं तदुपर्यधः ||११३४ ॥
ग्रहाङ्क भाजितैर्लब्धमुपरि पूर्ववत् क्षिपेत् ।
न्यस्ते च जायते योङ्कस्तावत्यः सेतिका मिताः ॥। ११३५ ।। प्रत्येक महों की संख्या को मै कहता हूँ, चन्द्रमा, बुध, मंगल, इन ग्रहों की ६० संख्या, और रवि को १३५ संख्या होती है ।। ११२६ ।। गुरु की ५५ संख्या, और शुक्र की ७५, शनि को ६५, तथा राहु की ६० संख्या होती हैं
११३० ।।
इन ग्रहों की संख्या को एकत्र कर ६०० पिण्ड होता है, प्रह, नक्षत्र, राशि, इन को संख्या को एक जगह इकठ्ठा करके ।। ११३१ ।। उसको ग्रह की संख्या से गुगान कर पृथक २ दो जगह स्थापित करें, उसमे से आधी राशि को चैत्र नार्घ से भाग देवें ।। ११३२ ।।
जो लब्धि हो उस में नक्षत्र की संख्या को जोर देवें । उस भाग को लेकर ऊपर स्थापित अङ्क मे मिला कर जो हो उसको ऊपर में उस से नीचे स्थापित करें ।। ११३३-११३४ ।।
उस को यह की संख्या से भाग देवें लब्धि जो हो उस को पूर्ववत् भ संख्या में क्षेप करके न्यास करने पर जो अंक आवे उसने ही सेविका का प्रमाया होता है ।। ११३५ ।।
1. पञ्चत्रिंशत्तमा Bh. 2. संमील्य for संकल्य A. 3 मीलfural for after A. 4. उपरि मिते for उपरि भे Bh. 5. समृगेक प्रबर्धनैः
A.