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________________ ( २०७ ) शतं च भवत्यश्लेषा पञ्चनवतिपूरितम् । एकादशाधिकान्यत्र मघानवशतानि च ॥ ११२३ ॥ सप्तदशाधिकं चात्र शतद्वयं च फाल्गुनी । द्वे तु भद्रपदे चवमेतदृक्षचतुष्टयम् ॥११२४॥ पूर्वाषाढाशते द्वे च पञ्चाशदधिके मते । द्वे शते ऽप्यु तर पाला पञ्चपञ्चाशदुत्तरे ॥ १९२५ ॥ मूले पष्टिभवेदेवं धिण्यसंख्या प्रकीर्तिता । पण्णवतिशतान्यष्टौ चतुस्सहस्रपिण्डकः ॥ ११२६॥ नक्षत्रसंख्यापिण्डः ४८९६ सिंहधनुर्घटाः सर्वे नवतिसंख्यका मताः । शतसंख्यो भवेत्ककस्त्वेकविंशतिमिश्रितः॥ ११२७॥ पञ्चोत्तरशतं शेषा मेषादय उदाहृताः । द्वादशव शतान्यत्रा येकत्रिंशद् युतानि च ॥ ११२८ ॥ १२३१ सवराशिसंख्यापिण्डः कथितः । प्रत्येकं खलु खेटानां संख्यां ब्रवीमि शाश्वतीम् । अश्लेषा नक्षत्र में १६५ संख्या, और मघा मे ६११ संख्या होती है।। ११२३ ॥ पूर्वफाल्गुनी, उत्तरफाल्गुनी, नक्षत्र में २१७ और पूर्वभाद्र, उत्तर भाद्र नक्षत्र में २ संख्या होती है यह नक्षत्रचतुष्टय होता है ॥ ११२४॥ पूर्वषाढ नक्षत्र मे २५० और उत्तराषाढ़ नक्षत्र में २५५ संख्या होती है ।। ११२५ ॥ मूल नक्षत्र में साठ होता है इस प्रकार नक्षत्रों की संख्या कही, इस प्रकार नक्षत्र संख्या पिए ४८६६ होता है ।। ११२६ ।। सिंह, धनुष, कुम्भ में ७० संख्या, कर्क मे १२१, संख्या होती है।॥ ११२७ ।। मौर शेष मेषादिक राशियों की १०५ संख्या, सब को मिला कर १२३१ संख्या पिण्ड होता है ।। ११२८ ।। 1. प्रदर्शिता for प्रकीर्तिता A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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