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( १ ) चन्द्रस्तोकमपि व्योनि रोहिणीशकटं स्पृशन् । उद्गच्छति यदा वाच्यं दुर्भिक्षं तत्र नित्यशः ॥१०१८॥ रोहिण्या यदि मध्येन चन्द्रो गच्छति पाटयन् । तदा दुस्थं विजानीयात् कम्युक्ते विशेषतः १०१९॥ . अथ चन्द्रो यदा ब्राह्मी दक्षिणेनैव गच्छति । दुर्भिक्षेण तदा भूमेयुगान्त इव जायते ॥१०२०॥ रोहिण्यामेकनक्षत्र स्यातां चन्द्रदिवाकरौ । द्वितीयायां प्रजाहानिदुर्भिक्षण भयेन वा ॥१०२१॥ कुजः शनि राहुर्वा भिनत्ति यदि रोहिणीम् । ध्रुवं तदा पदाम्भोधौ निमजति जगञ्जनः ॥१०२२ यदि तत्र च चन्द्रारराहुमन्दास्तु दक्षिणाः । तस्यास्तदा बुधैर्वाच्यो महांश्च प्रलयो भुवः ॥१०२३।
आकाश में चन्द्रमा थोड़ा भी रोहिणी शकट का भेदन करता हुमा उदय हो तो वहां नित्य दुर्भिक्ष होता है ।। १०१८॥
यदि चन्द्रमा रोहिगी शकट के मध्य को भेदन करता हुआ उज्य हो तो दुस्थिति होती है और यदि पापग्रह का योग हो तो विशेष दुःस्थिति होती है ॥ १०१६ ।।
यदि चन्द्रमा रोहिणी शकट के दक्षिण से जाय तो पृथ्वी में युगान्त के समान दुर्भिक्ष होता है ।। १०२० ।। .
यदि चन्द्रमा, सूर्य, दोनों एक साथ, द्वितीया को रोहिणी नक्षत्र में हों तो दुर्भिक्ष से तथा भय से प्रजा की हानि होती है ।। १०२१॥
मंगल, शनि, पा राहु, यदि रोहिणी शकट को भेदन करें तो निश्चय संसार के लोग पानी में डूबते हैं ।। १०२२ ॥
__ यदि चन्द्रमा, मगल, गहु, शनि, रोहिणीशकट के दक्षिण में हों तो पण्डित लोग पृथ्वी का महाप्रलय कहें ।। १०२३ ॥
1. स्पृशेत for स्पृशन A. 2. गच्छन् विपाटयन् fot गच्छति पाटयम् A. ४. तदा हि दुस्थं जानीयात for तदा दुस्थं विमानीयात A. 4. वेत्स्यातां चन्द्रास्किरों tor स्यातां चन्द्रदिवाकरौ A.