________________
( १८८ ) तमोवक्रसवित्राद्याश्चत्वारः करखेचराः । पञ्चमस्थाः शनेरेते दौस्थ्यदुभिक्षकारकाः ॥१०१२॥ मन्दराहोरपि रास्तृतीये सौस्थ्यकारकाः । एतयोः पञ्चमाः ऋराः दुःखदुर्भिक्षहेतवः ॥१०१३॥ बृहस्पतितमःसौरिमङ्गलानां यदैककः । त्रिके च पञ्चके कार्या धान्यस्य क्रयविक्रयौ ॥१०१४॥ सत्यारतमसो युक्ता धनुमीने स्थिता यदा । पृथ्वीत्रिभागशेषा च दुर्भिक्षं च तदा भवेत् ॥१०१५॥ त्रिकपञ्चकयोगी द्वौ व्याख्यातौ गुरुदर्शितौ । योगं वदामि रोहिण्या ग्रहयोगाच्छुभाशुभम् ॥१०१६॥
रोहिण्या सौम्ययोगेन करदर्शनवर्जिते । _ उत्तरग हैः सर्वैः सुभिक्षं निश्चितं भवेत् ॥१०१७॥
__ यदि शनि से पञ्चम में राहु, मंगल, सूर्य, आदि के चार पापग्रह हों तो दुःस्थिति तथा दुर्भिक्ष करते हैं ॥१०१२।।
___और शनि, राहु से भी तृतीय में पापग्रह हों तो स्वास्थ्यकारक होते है. तथा इन दोनों से पञ्चम में पापग्रह हो तो दुःख, और दुर्मिक्ष का कारण होते है ।।१०१३॥ .
बृहस्पति, राहु, शनि, मंगल, ये एक एक करके यदि त्रिक सहक में हो तो धान्य खरीदना चाहिये, और यदि वे पश्चक संज्ञक में हों तो धान्य का विक्रय करना चाहिये ॥ १०१४ ॥
नि, मंगल, राहु, ये सब ग्रह यदि धनु, या मीन में स्थित हो तो पृथ्वी का तृतीयांश ही शेष बचता है और दुर्भिक्ष होता है ॥१०१५॥
गुरु से दिखाये हुए उन दोनों त्रिक, पत्रक योगों को मैंने कहा, ओर अब ग्रहों के योग से रोहिणी का शुभाशुभ फल कहता है ॥१०१६॥
गाहणी में शुभग्रहों का योग हो और उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि नही हो और सब ग्रह उसके उत्तर मार्ग में हों तो निश्चय मुभिक्ष होता है॥ १०१७ ॥ ... 1. शन्यारतमः सौ for सत्यारतमसो A. 2. उत्तरमे० for च . A.