________________
( १८३)
भवेच्छतभिषक्दश नक्षत्रेषु सुभिक्षकम् । एवं पक्षद्वये प्रोक्तं योगे योगे फलं यदेत् ।। ९८५॥ तिथिनक्षत्रयोः सौम्यमृगादिधिष्ण्यपञ्चके । पूर्णिमायां विधेर्योगे तुल्याघशमनं भवेत् ।। ९८६ ॥ सौम्यैकवक्रोऽप्यशुभोऽतिचार : करोति सर्व विफलं समर्षम् । करकवकनः शुभदोऽतिचारो धान्यं विधत्ते भुवने महर्षम् ।।९८७ सुभिक्षं च तदैव स्याद्वक्रत्वं सितसौम्ययोः । वक्रत्वे तु गुरोर्नूनं राशिप्रान्ते समयकम् ।। ९८८ ।। कन्यायां बुधवक्रत्वे सुभिक्षं निश्चितं मतम् । वर्षाकालऽप्यतीचारे समघ भुवि जायते ॥ ९८९ ॥ भौमायोरप्यतीचारे सुभिक्षं भवति स्फुटम् । सौम्यानामप्यतीचार धिष्ण्यहानौ च निष्फलम् ॥ ९९० ॥
शतभिषा से दश नक्षत्रों में सुभिक्ष होता है, इस प्रकार दोनों पक्षों में कहा और योग योग में ऐसे फल कहे ८५॥
इस प्रकार शुभ तिथि नक्षत्रों के याग से सुभिक्ष होता है, पूर्णिमा में मृगशिरा आदि के पांच नक्षत्रों में चन्द्रमा का योग हो तो तुल्यार्घ तथा शान्ति होती है ॥१६॥
एक शुभग्रह वक्र हो, और अशुभग्रह अतिचार हो तो वह सब समर्घ को नष्ट करता है, और एक पापग्रह वक्र हो और शुभग्रह अतिचार हो तो वह धान्य को महर्ष करता है ।।१८७॥
बुध, शुक्र, वक्र हो तो मुभिक्ष होता है, और, गुरु यदि वक्र हो तो राशि के अन्त में समर्थ होता है । ६८८||
कन्याराशि बुध वक्री हो तो निश्चय सुभिक्ष होता है, और वर्षा काल में भी अतिचार हो तो भी पृथ्वी में समर्थ होता है ॥६८६||
भौम, शनि के भी अति चार में सुभिक्ष हाता है। शुभ ग्रहों के अतिचार में भी यदि नक्षत्र की हानि हो तो निष्फल होता है । ____ 1. भावदश for भवेच्छतं A'.. 2. ०र्थ्यमशनं for पशमनं A, Bh.