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मेषादित्रित सूर्ये शुभयुक्ते तिथिक्षये ।
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कर्णादौ पूर्णिमायोगे मह तु हठाद्भवेत् ।। ९९१ ॥ स्वातिमुख्याष्टमे जीवे अश्विन्यादित्रिकेऽपि वा । शनिराहुकुजेश्ववं प्रत्येकं सहितो भवेत् ।। ९९२ ।। सञ्चरन्ति यदा काले सुभिक्षं जायते क्षितौ । मृगादिदशके जीवे धनिष्टापञ्चवेऽपि वा ।। ९९३ ॥ भौमादिसहितो गच्छेद् दुर्भिक्षं तत्र जायते ।
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एकराशिगत चैवमेकक्षं च महद् भवेत् ।। ७९४ ।। त्रिपञ्चकयोग विस्तरतो व्याख्यायेते ।
स्वात्याद्यष्टक संयुक्तमश्विन्यादित्रिकं पुनः । त्रिकसंज्ञं बुधर्वाच्य मघ काण्डं विशारदः ।। ९९५ ।
मेषादि, तीन राशि मे शुभ युक्त सूर्य हो और तिथि क्षय हो और पूर्णिमा मे श्रवणा आदि नक्षत्रों का योग हो तो हठत् महर्ष होता है ||१||
स्वाती आदि के आठ नक्षत्रों मे वा अश्विन्यादि तीन नक्षत्रों मे बृहस्पति हो और शनि, राहु, मंगल इन प्रत्येक ने युक्त हो ||२||
पूर्वोक्तयोग विशिष्ट गुरु जब सञ्चार करे उस काल में पृथ्वी मे सुभिक्ष होता है, मृगशिरा आदि के दश नक्षत्र मे वा धनिष्ठा, आदि के पांच नक्षत्रों में बृहस्पति ॥ ६६३ ||
मंगल, शनि, राहु से युक्त गुरु पूर्व नक्षत्र में संचार करें तो दुभ होता है, यदि ये एक राशि में हों तो एक वर्ष पर्यन्त महान् भय होता है ||६६४ ||
अथ त्रिकपञ्चकयोगौ विस्तरतो व्याख्यायेते
स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ, उत्तराषाढ श्रवणा, अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, इन नक्षत्रों का त्रिक संज्ञक, अर्धकाण्ड निपुण पंडित कहते हैं ||६६५॥
1. A. adds: - धनुर्म कर कुंभेषु यत्क्रीतं धान्य जीवनम् । तत्कर्क मिथुने देयं पतिता सितपंचमी ॥
2. मेत्र tol मेक Bh.