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दशमे राज्यपदं हन्ति लाभौघं लाभगः पुनः । व्यये महान्ययं हन्ति राहुः सर्वत्र बाधकः ॥९३८॥
इति राहुफलम् । वर्षफलं गुरोर्गच्यं रवेर्मासफलं पुनः । पञ्चदशघटीनां च चन्द्राद् वाच्यं दिने फलम् ॥९३९॥ त्र्यंशांशकात्फलं चन्द्राद् घटीसाईचतुष्टयम् । ग्रहाणामंशकं ज्ञात्वा फलं वाच्यं दिनोद्भवम् ॥९४०॥ दिनचर्याफले पुंसां क्षीणचन्द्रो न दृश्यते । दृष्टौ योगे ममं चैव फलमंशगतं भवेत् ॥ ९४१॥ जन्मलग्ने च तद्राशौ नामलग्नदिशांशके । तत्कालकेऽथवा लग्ने दिनचर्याफलं वदेत् ॥ ९४२ ॥ अथ ग्रहान्ते पड़वांशकुण्डलिकाः कथ्यन्ते । त्रिंशद्भागे दिनं चकं बुधस्य रविशुक्रयोः । माद चतुष्टयं नाड्यः शशिनश्च सतां मताः ॥ ९४३ ॥
राहु दशम में हो तो राज्य पद का नाश करता है, और लाभ स्थान में हो तो लाभ नहीं होता है, और, व्यय स्थान में हो तो बहुत व्यय कगता है, बाधक राहु सब जगह नाश ही करता है ॥६३८॥
इति राहुफलम् । गुरु से वर्ष फल, तथा रवि से मास फल और दिन में चन्द्रमा से पन्द्रह घटी का फल कहें ।। ६३६ ॥
चन्द्रमा से त्रिंशांश के वश साढ़े चार घटो का फल कहें, और ग्रहों का अंश जान कर दिन का कल कहें ॥ ६४० ॥
दिनचर्या फल में क्षीण चन्द्र का विचार नहीं करें, और पूर्ण चन्द्र का दृष्टि तथा योग से समान फल होता है, वह जिस अंश में गत हो उस से फल का विचार करें ।। ६४१ ।। ___जन्म लग्न से, और नाम राशि से या प्रश्नकालिक लग्न से दिन पर्या फल कहना चाहिये ॥ ४२ ॥
अब ग्रह के बाद षड्वर्गीश कुण्डली को कहते हैं
बुध, रवि, आर शुक्र, इन ग्रहों के त्रिंशांश पर से एक दिन का फल तथा चन्द्रमा से साढ़े चार घटी का फल कहें ।। ६४३ ॥