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( १७५ ) मङ्गलस्य दिनं साई मासमेकं शनैर्मतम् । अष्टादश दिनान्याहुः सिंहिकायाः सुतस्य च ॥ ९४४ ॥ गुरोस्त्रिंशांशभागाः स्युस्त्रयोदश दिनान्यहो । निश्चितं श्रीमताप्युक्तं श्रीहेमप्रभसरिणा ॥ ९४५ ।।
इति त्रिंशांशकुंडलिकाः। श्यामांगरविशुक्राणामुक्तं सार्द्धदिनत्रयम् । सपादैकादशेन्दोश्च घटिका द्वादशांशके ॥ ९४६ ।। मासमेकं विजानीहि साई दिनद्वयं गुरोः । साई मासद्वयं चैत्र मन्दस्य कथितं बुधैः ।। ९४७ ।। सपक्षं मासमेकं च गहोस्तु कथितं सदा । त्रिभागसहितं विद्धि मंगलस्य दिनत्रयम् ॥ ९४८ ॥
इति द्वादशांशकुण्डलिकाः । और मंगल से डेढ रिन, शनि से एक मास, और राह से अठारह दिन का फल कहें ||४||
गुरु से त्रिंशांश के वश तेरह दिन का फल कहें इस प्रकार श्रीमान् हेमप्रभसूरि भी निश्चित फल कहे हैं ।। ६४५ ।।
___ इति त्रिंशांशकुण्डलिकाः। बुध, रवि, शुक्र, इन ग्रहों से द्वादशांश के वश साढ़े तीन दिन का शुभाशुभ फल हैं, और चन्द्रमा से सवा ग्यारह घटी का फल कह ॥ १४६ ॥
___ गुरु से एक माम अढ़ाई दिन का फल जाने और शनि से अढ़ाई मास का फल कहें॥६४७ ॥
राहु से द्वादशांश के वश डेढ़ मास का फल, और, मंगल से सवा तीन दिन पर्यन्त शुभाशुभ फल का द्वादशांश पर से विचार करें ।।६४८॥
इति द्वादशांशकुएडलिकाः ॥ 1. दिनानि च for दिनान्यहो Bh. 2. द्वयम for त्रयम Bh.