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अष्टमे तु सुखं हन्ति पुण्ये कुर्याज्जिनवतम् । पदेऽपि राजविध्वंसं लाभे हन्ति धनागमम् ॥९३३ || व्ययेऽनिष्टव्ययं दत्ते स्वक्षेत्रे शुभकारकः । स्वोच्चे च मित्रभावे च शुभोऽयं तनुते शनिः ॥ ९३४ ॥ इति शनिफलम्
दिनेन्दौ तनुते राहुर्मामद्रयं तनोघनाम् ।
पीडां करोति शस्त्राद्यैधने स्वं हन्ति तत्क्षणात् ॥ ९३५ ॥ तृतीये भ्रातरं हन्ति तुयें भोज्य कुटुम्बके ।
सुतेऽवश्यं घनान् पुत्रान् षष्ठे हन्ति रिपून् ध्रुवम् ॥९३६॥ धृतां च परिणीतां च प्रेयसीं हन्ति सप्तमे । अष्टमे च सुखं हन्ति
मालिन्यं याति भाग्यगे ||९३७||
अष्टम में हो तो सुख का नाश करता है, और नवम में हो तो जैन मत का अवलम्बन करने वाला होता है, पद स्थान में हो तो राज्य का विध्वंस करता है | लाभ स्थान में हो तो धनागम का नाश करता है ||६३३ व्यय स्थान में हो तो अनिष्ट मार्ग में व्यय कराता है, और वही स्वक्षेत्र तथा स्वकीय उज्ज में, मित्र भाव में हो तो शुभ फल को देता है ।।६३४ इति शनिफलम् ।
यदि राहु लग्न में हो तो दो मास पर्यन्त शस्त्रादि से बहुत कठिन पीड़ा होती है, और धन भाव में हो तो उसी क्षण धन को नाश करता है ||३५||
तृतीय में हो तो भ्राताओं का नाश करता है, और चतुर्थ में हो तो भोज्य तथा कुटुम्ब का नाश करता है, पुत्र भाव में हो तो बहुत पत्रों का, और षष्ठ में हो तो शत्रुओं का नाश करता है, ॥३६॥
राहु सप्तम में हो तो विवाहिता स्त्री, वृता, तथा प्रेम युक्ता का भी नाश होता है, अष्टम में हो तो सुख का नाश करता है, और भाग्य स्थान में हो तो उसको मालिन्य करता है ||३७||
1. ततोsर्थनाम् for तनोर्घनाम् Bh.