SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१५२ ) तृतीये बन्धुमियुदं चतुर्थे भूमिकर्षणम् । पञ्चमे बुद्धिहानि च षष्ठे स्वातन्त्र्यमुत्कटम् ॥९२८।। सप्तमे ललनायुद्धमष्टमे तनुपातनम् । नवमे पुण्यपीडां च दशमे मन्त्रिविग्रहम् ।।९२९॥ एकादशे निहन्त्यायुादशे हठतो व्ययम् । स्वक्षेत्र मित्रगेहे च स्वोच्च च तनुते शुभम् ।।९३०|| इति भीमफलम् । शनर्मासत्रयं त्र्यंशे दारिद्रय कुरुते गृहे । धने हन्ति धनं गेहे तृतीये भ्रातृसम्पदम् ।।९३१।। तुर्ये भोज्यश्रियं हन्ति पञ्चमे सुतपीडनम् । षष्ठं दुष्टान् रिपून हन्ति सप्तमे हन्ति निर्वृतिम् ।।९३२।। तृतीय में हो तो बन्धुओं के साथ युद्ध करता है, चतुर्थ मे भूमि कर्षण करता है. पश्चम में हो तो बुद्धि की हानि होती है, षष्ठ में हो तो स्वतन्त्र तथा उत्कट होता है ।।१२।। सप्तम महा तो स्त्री का युद्ध, अष्टम मे हो तो शरीर का पतन, नवम में पुण्य और पीड़ा होती है, और दशम में मन्त्री सं विग्रह होता एकादश में हो तो आयु का नाश करता है, द्वादश में हो तो हठ से व्यय करता है, अपने घर, तथा मित्र के घर, या उच्च का मंगल हो तो शुभ फल देता है ॥३०॥ इति भीमफलम् ॥ यदि शनि लग्न में हो तो तीन मास पर्यन्त दरिद्र करता है, और धन में हो तो धन का नाश होता है, तृतीय में हो तो भ्रातृ सम्पत्ति का लाभ होता है ।।३।। चतुर्थ में हो तो भोज्य और लक्ष्मी दोनों का नाश करता है, पप्रम में हो तो पुत्र की पीड़ा, षष्ठ में हो तो दुष्ट शत्रुओं का नाश करता भोर सप्तम में हो तो वृत्ति का नाश करता है ॥६३२॥ 1. सापनम for पातनम Bh. है ॥२६॥
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy