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( १९८) रवेरंशे च जायन्ते सत्रिभागा दिनास्त्रयः । यत्रांशेऽम्युदितो भास्यान् तदंशकपते रवेः ॥९०६॥ मित्रता चेद् घतिदृष्टिमवेत्तदा शुभं बहु । एवं सर्वग्रहर्योज्यमुच्चस्वमित्रसङ्गमः ॥९०७|| तदनुसारेण सर्वत्र फलं वाच्यं शुभाशुभम् । मृता रवौ प्रतापायोप्यधृप्यो द्विषतां पुनः ॥९०८।। धने च धननाशं च तृतीये करमाषकः । तुर्ये भोजनदौस्थ्यं तु सुते पुत्रस्य पीडनम् ॥९०९॥ षष्ठे शत्रुविनाशः स्यात्सप्तमे न धृतिर्भवेत् । आधिव्याधिधने छिद्रे नवमे पुण्यविप्लवः ॥९१०॥ महत्पदं भवेद्राज्ये स्वल्पो लामो हि लाभगे। भूपाद्दण्डो व्यये वाच्योंऽशकादिकविचारणा ॥९११॥ द्वादशरशिगो भास्वान् बने वर्षफलस्फुटम् ।।
रवि के अंश में त्रिभाग युक्त तीन दिन होते हैं, जिस अंश में सूर्य का उदय हो उस अंश के स्वामी से यदि सूर्य की मित्रता या द्युति दृष्टि हो तो अनेक प्रकार का शुभ होता है इस प्रकार सय ग्रहों का उच्च, स्वगृह, तथा मित्रादि योगों का विचार करें ।। ६०६-७.
आर उसके अनुसार मव जगह शुभाशुभ फल कहे, यदि लग्न म सूर्य हो तो वह प्रतापी भी हो तो धृष्ट तथा शत्रुता का भाव उसमें होता है॥६०८|
यदि धन स्थान में हो तो धन का नाश करने वाला होता है, और तृतीय में दुष्ट बात बोलने वाला होता है, और चतुर्थ में हो तो भोज में दुःस्थिति होती है, पुत्र स्थान में हो तो पुत्र को पीड़ा होती है ।। ६०६ ॥
और षष्ठ स्थान में शत्रु का नाश होता है, और सप्तम में हो तो अधर्म्य वाला होता है. अष्टम में हो तो मानसिक व्याधि तथा धन होता है, नवम में पुण्य को हानि होती है ।।६१०॥.
राज्य स्थान में विशिष्ट पद की प्राप्ति होती है और लाभ में हो तो स्वल्प लाभ होता है, व्ययस्थान में राजा से दण्ड होता है ऐसे अंशाविक विचार करें ।। ६१ ॥
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