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तत्कालं जायते रोधो बन्धार्थ वरतोऽपि वा । अनाथे करगे लग्ने लाभे करयुतेक्षिते ॥९०११॥ दिनेन्दौ शस्त्रघातेन मृत्युयोगेन जीवति । यदीन्दुदिनचर्यायां शुभः स्यादुदयास्तयोः ॥९०२॥ श्रेयास्तदापि वक्तव्यः समस्तोऽपि हि वासरः । लग्ननाथे शुभैयुक्ते लाभस्थाने सिते गते ।।९०३॥ दिनेन्दौ शस्त्रघातेन मृत्युयोगेऽपि जीवति । यत्रांशेऽभ्युदितो भास्वान् स संचा- नवोदिते ।।९०४।।
अथ रविवशात्फलम् । विबुधैः सग्रहे लग्ने ततो मासफलं वदेत् । मासफले च सचार्यों रविवादशभावतः ।।९०५।।
व्यय स्थान में शुभ ग्रह हो तो विवाहादि शुभ कार्यो में सद् व्यय होता है, और प्रश्न काल में चन्द्रमा कर ग्रहों के साथ धन, व्यय, लम, में हो ॥१०॥
तो उस काल में शत्रु से बन्धन के लिये अवरोध होता है, अपने स्वामी को छोड़ कर और पाप ग्रह लग्न में हो, तथा लाभ स्थान में पाप प्रह का योग या दृष्टि हो । ६०१ ।।
पूर्वोक्त योग में चन्द्रमा भी लाभ भवन में हो तो शस्त्र के पाठ से मृत्यु योग होने पर बच जाता है, यदि दिनचर्या में चन्द्रमा, उदय अस्त में शुभ हो ।। ६०२ ॥
तो भी सम्पूर्ण दिन श्रेष्ठ कहना चाहिये, लग्नेश, शुभ ग्रहों से युक्त हो और शक, लाभस्थान में हो ॥६०३ ॥
उस पूर्वोक्त योग में चन्द्रमा भी लाभ स्थान में हो तो शस्त्र घात से मृत्यु योग होने पर भी जीता है। जिस अंश में सूर्य उदित हो उस उस नवोदित अंश से सूर्य का संचार करें ।। ६०४॥
यदि लम प्रह से युक्त हो तो उस से पंडित लोग मास फल को कहें, मास फल के लिये सूर्य को द्वादश भाव में संचार करें ।। ६०५॥