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अथ गुरुफलम् । गुरुणा भावगे नैवं द्वादशाब्दफलं वदेत् । प्रतिवर्ष स संचार्यो बुधैर्द्वादशराशिषु ॥९९२॥ बृहस्पतिर्धनुमने कर्के सिंहेऽन्त्यजेऽलिनि । कुरुतेऽप्युत्तमं लाभं मासत्रयोदशावधि ||९१३|| गुरुमृता जयं दत्ते धनवृद्धिं धनस्थितः । तृतीये मधुरं व्रते तुयें भोज्यं धनं घनम् ।।९१४ ।। कान्तासुखं धनावाप्तिर्वाटिका भूमिकर्षणम् । कुटुम्बं मित्रसौख्यं च कुरुते हायनावधि || ९१५|| सुतेऽवश्यं सुतं दत्तं प्रतापं बुद्धिवभवम् । षष्ठे रोगं रिपोवृद्धिं कुरुते स्वफलावधि ||९१६ || सप्तमे ललनासौख्यं शुक्रज्ञन्दुयुते बहु | अष्टमे निश्चिता गंगाः
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पुप्ये सत्रादि कारयेत् ॥ ९१७ ॥
द्वादश राशियों में सूर्य के वश स्पष्ट वर्ष फल कहते हैं, इसी तरह द्वादश भावों मे गुरु के वश द्वादशाब्द का फल कहते हैं ॥ ६१२ ॥ • प्रतिवर्ष पंडित लोग द्वादश राशियों में गुरु का संचार करके फल कहें ॥
बृहस्पति यदि धनु, मीन, कर्क, सिंह, मेष, वृश्चिक, इन राशियों में हो वो त्रयोदश मास पर्यन्त उत्तम लाभ होता हे ॥ ६१३ ॥
बृहस्पति, लम मे हो तो जय, धन में हो तो धन की वृद्धि, तृतीय में हो तो मधुर वाक्य होता है । चतुर्थ में सुन्दर भोजन और बहुत धन होता है । ६१४ ॥
और स्त्री सुख, धन की प्राप्ति, वाटिका, भूमिकर्षण तथा कुटम्ब, मित्रों का सौख्य वर्षपर्यन्त होता है ।। ६१५ ॥
सुत स्थान में अवश्य ही पुत्र, प्रताप तथा बुद्धि वैभव होता है. और षष्ठ मे रोग, शत्रु की वृद्धि अपने फल पर्यन्त करते हैं ।। ६१६ ।।
सप्तम में स्त्री का मौख्य और वह शुक्र, बुध, चन्द्रमा से युक्त हो तो उस से विशेष सौख्य होता है, अष्टम में निश्चित रोग होता है और पुण्य भाव में हो तो सत्रादिक कराता है ।। ६१७ ।।
1. पुण्ये for पुष्ये A. 2. पुण्ययात्रादि for पुष्ये सत्रादि Bh.