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( १९२ ) शुभः स्वोच्चादिगो मृतौ धने राज्येऽथवा स्थितः । कुर्यालाभ क्षणादेवमेवं पुण्यं शुभेक्षितम् ।। ८७१ ॥ गुरौ लमे खौ राज्ये धुने सौम्येऽथवाऽम्बरे । लामो लामास्तर्गः सौम्यः पापंस्त्रिमध्यगैस्तथा ॥ ८७२ ॥ उचगेहे धनेऽप्युचे लग्ने तुंगे शुभेक्षिते । पष्ट त्वायगते चन्द्रे लाभो भवति तत्क्षणात् ॥ ८७३ ॥ लग्ने लमेशसंयुक्त लाभेशेऽभ्युदिते तदा। स्वोच्चे वा यातुकामे वा लामो भवति सम्पदाम् ॥ ८७४ ॥ लाभ लाभेशसंहृष्टे लाभे शुक्रे गुरौ विधौ । लामो भवति तत्कालं स्वस्यान्यस्य श्रिया समम् ।। ८७५ ।। लमे तुंगे सुखे तुंगे तुंगे पुत्रे शुभक्षिते । तुंगे च लाभगे शुक्रे ग्रामदेशादि लभ्यते ॥ ८७६ ॥
शुभ ग्रह स्वोच्चादि में स्थित होकर लग्न धन, वा राज्य, स्थान में स्थित हों तो उसी क्षगा लाभ कहना चाहिये यदि पुण्य स्थान शुभ ग्रह देखे तो भी लाभ होता है ।। ८७१ ॥
गुरु लग्न में हो रवि राज्य स्थान में हो और शुभ ग्रह सप्तम वा दशम में हो तो लाभ होता है, और शुभ ग्रह यदि लाभ, तथा सप्तम में हो तथा पाप ग्रह तृतीय, मध्य में हो तो लाभ होता है ।। ७७२ ॥
शुभ ग्रह उस का होकर, धन में तथा लम्र में हो, और शुभ ग्रहों की रष्टि हो तथा पुष्ट चन्द्रमा लाभ स्थान में हो तो उसी समय लाम होता है ।।८७३ ॥
लमेश लम में हो, तथा लाभेश अभ्युदित होकर उच्च में स्थित हो वा उस में आने वाला हो तो सम्पत्ति का लाभ होता है। ८७४।।
लाभ स्थान लाभेश से युक्त हो तथा लाभ स्थान में शुक्र, गुरु, चन्द्रमा, हो तो उसी समय अपना या दूसरे का धन से लाभ होता है ॥८ ॥
शुभ ग्रह उच का होकर लग्न, चतुर्थ, तथा पञ्चम भाव में मौर गुरु सका होकर लाभ स्थान में हो इन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो देश अथवा प्राम का नाम होता है ।।८७६ ॥