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________________ ( १५३ ) आर्द्रा च भरणी स्वातिरश्लेषा शततारका । ज्येष्ठा च रविसंक्रान्तौ पञ्चदश मुर्तिका ||८२२|| धनिष्ठा रेवती पुष्योऽनुराधा कृत्तिकाश्विनी । हस्तः पूर्वात्रयं चित्रा श्रुतिर्मूलं मृगो मघा || ८२३|| एतानि पञ्चदश च नक्षत्राणि मनीषिभिः । त्रिंशन्मुहूर्त कानीति प्रोक्तानि रविसंक्रमे ||८२४|| इत्यायेऽर्घकाण्डम् । अथ लाभप्रकरण एवार्धकाण्डं निरूप्य स्त्रीलाभप्रकरणम् । मूर्ती सुरे ज्येऽस्तगते शशाङ्क े बुधेऽथवा स्वर्क्षगते तु शुक्रे । संप्राप्यते व्योमगते च सूर्ये कन्या नरैः पार्थिववल्लभव ||८२५ ।। कर्कोदये सप्तमगे शशाङ्क चतुष्टये पापविवर्जिते च । अवाप्यते भूरिधनादियुक्ता नयप्रधाना विजितारिपक्षा ॥८२६ ॥ आयस्थिते तीव्रकरे स्वतुंगे मृता शशाङ्क परिपूर्ण देहे । आर्द्रा, भरणी, स्वाती, अश्लेषा, शतभिषा, ज्येष्ठा, इन नक्षत्रों में संक्रान्ति होने मे पन्द्रह मुहूर्त होता है ||२२|| धनिष्ठा, रेवती, पुष्य, अनुराधा, कृत्तिका, अश्विनी, हस्त, पूर्व फल्गुनी पूर्वाषाढ़, पूर्वभाद्र, चित्रा, श्रवण, मूल, मृगशिरा, मघा, ८२३॥ इन पन्द्रह नक्षत्रों में रवि संक्रान्ति हो तो पन्द्रह मुहूर्त होता है, ऐमा मुनियों का वचन हैं || ८२४|| लाभ प्रकरण में ही अर्धकाण्ड को कहकर अब स्त्रीलाभ प्रकरण कहते हैं ।। जिसको जन्म में बृहस्पति लग्न में हो, सप्तम में चन्द्रमा वा बुध हो, शुक्र अपने राशि में हो और सूर्य दशम स्थान में हो तो वह मनुष्य रानी के समान कन्या का लाभ करता है ||८२५|| जन्म समय में जिसको कर्क लग्न हो, सप्तम में चन्द्रमा हो और केन्द्र में एक भी पापग्रह नहीं हो वह बहुत धनादि से युक्त और नीति को जाननेवाली, तथा शत्रु पक्ष को पराजित करने वाली स्त्री का लाभ करता ॥२६॥
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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