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( १५१ ) मध्यक्षस्याधभागश्चेचन्द्रतिथ्योरथादिमः । तदा मध्योत्तमार्थोऽपि धान्यस्य विदुषां मतः ॥८१०॥ मध्यर्थी मध्यभागश्चेत् चन्दतिथ्योश्च मध्यमः । तदा मध्योत्तमाघः स्यादन्तिमेऽपि च मध्यमः ८११॥ मध्यक्षस्यापि मध्यश्चेत् चन्द्रतिथ्योरथादिमः । तदा मध्यम एवार्थो द्वयोमध्येऽपि मध्यमः ॥१२॥ एवं तिथिचन्द्रेण लवळविचारोऽपि वाच्यः । तथा च लवक्षस्याद्यभागश्चेत् चन्द्रतिथ्योरधादिमः । तदा जघन्योत्तमा? लघ्वक्षमध्यमो यदि ॥७१३॥ चन्द्रतिथ्योश्च मध्येऽस्ति तदा जघन्यमध्यमः। लघ्वक्षस्यान्तभागश्चेत् चन्द्र तिश्योरथान्त्यमः ॥८१४
यदि मध्यनक्षत्र का पहला भाग चन्द्र, तिथि का भी पहला भाग हो तो धान्य का मध्यम, उत्तम अर्घ होता है ।। ८१०॥
मध्य नक्षत्र का मध्यभाग चन्द्र, तिथि, का मध्यभाग होतो मध्यम, उत्तम अघे धान्य का होता है और अन्तिम भाग में भी मध्यम होता है ॥८११॥
मध्यम नक्षत्र का मध्यभाग चन्द्र तिथि का आदिमाग हो तो मध्यम अर्घ समझना चाहिये। दोनों के मध्य में होने पर भी मध्यम होता है ॥८१२॥
इस प्रकार लघुनक्षत्र चन्द्र तिथि पर से विचार कहते हैं। लघुनक्षत्र का आद्य भाग तथा चन्द्र तिथि का भी आद्य भाग हो तो अघमोत्तम अर्घ होता है यदि लध्व मध्यम में हो तो भी वही होता है ।। ८१३ ।।
लघु नक्षत्र का मध्यभाग तथा चन्द्र तिथि का भी मध्य भागहो तो इस तरह लघु नक्षत्र का अन्त्य भाग तथा चन्द्र तिथि का भी अन्त्य भाग होता है ॥८१४ । 1 मध्य for मध्यों Bh. 2. लब्धo for लध्वः Bh. 3. मध्यास्ति for मध्येऽस्ति Bh. 4. रथान्तिमः for रथान्त्यगः for A.