SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३६ ) मूषकाः शलभा पृष्टौ तुलासिंहपृषोदये । मृगे मेषालिकुम्भेषु वायुवह्नी कादयः ।। ७४६॥ युग्मे मीनधनुःस्त्रीषु शलभाः कृमिकर्तराः । काख्या जलशीतेन रसौषः स्वामिदर्शनात् ।। ७४७ ॥ शालिजतैलगोधूमतिलाढकीमकुष्टकाः ।। मुद्गचणकमाषाश्च सकांगुः कोद्रवस्तथा ।। ७४८ ॥ चदुला इति चान्नानि द्वादशांशक्रमात्पुनः । लग्नादेकैकलग्नेषु समसंख्यांशकैयुतः ।। ७४९ ॥ स्वीयेशदृष्टयवस्थाभ्यां द्वादशान्नोद्भवः स्फुटः । धान्योत्पत्त्यनुमानेन बुधर्वाच्यं शुभाशुभम् ॥ ७५० ॥ ___ यदि तुल, सिंह, वृष. लग्न हो तो मूपक तथा शलभ की वृष्टि होती है, और मकर, मेप, वृश्चिक, कुम्भ, इन लग्नों में वायु, अग्नि, वृक, आदि को वर्षा होती है ॥ ७४६ । यदि मिथुन, मीन, धनु, कन्या, लग्न हो तो शलभ तथा कृमि इत्यादिक वृष्टि होती है । कर्क लग्न हो और वह अपने स्वामी से दृष्ट हो तो जल शीत से रस बहुत होते हैं ।। ७४७ ।। चावल तेल गोधूम, सिल, आढ़की, मकुष्टक, मुद्र, चणक, माष कंगु. कोद्रव, नन्दुल, प्रथमाहि बारह द्वादशांशों को क्रम से लम गत होने से उसी क्रम से इन अन्नों की निष्पत्ति होती है और लग्न से एक एक राशि में लग्न संख्यक अंश-पर उसके स्वामी के योग तथा दृष्टि पर स्थित हों अयं की उत्पत्ति होती है. यह स्पष्ट है, और धान्योत्पत्ति के अनुमान से पंडित लोग शुभाशुभ फल कह ।। ७४८-७५० ।। 1. सरुकस्वाम्य० for रसौघः स्वामि० A. रसौषः स्वाभ्यः Bh. 2. शालिजोनल for शालिगतेल A. शालयो तिल Bh• 3. सकंगु Rh. 4. तंदुला : चटुला Bh. • वदेत for पुन: A, AL
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy