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विलग्नादीतयश्विन्त्या मण्डलैर्वृ ष्टिनिश्चयः ।
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येन विज्ञातमात्रेण ज्ञायतेऽर्थः परिस्फुटम् ॥ ७५१ ॥ धनिष्ठारोहिणी ज्येष्ठानुराधा श्रवणं तथा ।
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अभीचिरुत्तराषाढा भूमिमण्डलमुत्तमम् ।। ७५२ ।। भरणी कृत्तिका पुप्यो मघा च पूर्वफाल्गुनी । पूर्व भद्रपदा चेति तेजोऽभिख्यं विशाखया ।। ७५३ ॥ उत्तराफाल्गुनीहस्तचित्रा स्वाती पनर्वसु ।
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अश्विनी च मृगचेति वातयन्त्रं चतुष्टयम् ॥ ७५४ ॥ सप्तरात्रान्महीतत्त्वं फलत्येव शुभं फलम् । जलतत्त्वं च मासेन शुभसौख्यफलप्रदम् ।। ७५५ ॥ अग्न्याख्यमष्टभिर्मासंर्मासयुग्मेन मारुतः ।
अशुभं द्वौ फलं दत्ते वायुवी महीभुजाम् || ७५६ ||
लग्न से ईति का विचार करना चाहिये और मण्डल से वृष्टि का निश्चय करें जिसको जानते ही सब वस्तु का ज्ञान हो जाता है ॥ ७५१ ॥ धनिष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, अनुराधा, श्रवण, और अभिजित्, उत्तराषाढ़ा, ये भूमिमण्डल होते हैं ।। ७५२ ॥ भरणी, कृत्तिका, पुष्य, मघा पूर्वफल्गुनी, पूर्वभाद्र, विशाखा, ये
तेज मण्डल कहलातें हैं ।। ७५३ ।।
पूर्वाषाढ़ा, अश्लेषा, मूल, आर्द्रा, रेवती, उत्तराभाद्र ये जलसंज्ञक है। उत्तरा फल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, पुनर्वसु, अश्विनी, मृगशिरा, ये चौथा वातमण्डल है ।। ७५४ ॥
पृथ्वी तत्व सात राशि में शुभ फल देता है । जल तत्व एक मास में शुभ, सौख्य फल को देता है ।। ७५५ ।।
अमित, आठ मास में, और वायुतत्व दो मास में ये दोनों अशुभ फल देते हैं ।। ७५६ ॥
1. विज्ञान for विज्ञात A. 2. After this verse At adds पूर्वाषाढा तथाश्लेषा मूलमार्द्रा च रेवती । उत्तरभद्रपर्यायसंज्ञ शतभिषक् समम् ७५३ 3. चतुर्थकम् Bh.