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( १२७ ) दशमं कूपकं ख्यातं तदेव पञ्जरं मतम् । मध्ये मौलिक्यजवायां बध्यन्ते जिनकाष्टकम् ॥ ६८० ॥ तत्रैव बध्यते कूपः सङ्गः पोतस्ततो भवेत् । परवाणाग्रसंलग्नो हारिणीदोर उच्यते ॥ ६८१ ॥ कुवारं छिद्रसंज्ञं च नवमं पुष्पसंज्ञकम् । आयुरायुरिति ज्ञेयं द्वादशमन्त्यनामकम् ॥ ६८२ ॥ पुण्याये सबले लामाष्टमे दुष्टधनागमः । यत्र क्रूराः क्षयस्तत्र सौम्या यत्र शुभं ततः ॥ ६८३ ॥
इति प्रवहणपद्धतिस्ताजिकाभिप्राये । आदित्यायैवलिभिभवन्ति पुंसां यथाक्रमं दीक्षाः । तापसायकपालिसौगतभगवद्यतिचरकजैनानाम् ॥६८४ ।। यावन्तो वलिनः खेटाः प्रवज्या तावतामपि । एकमवेऽपि चैकस्य तावद्धेलावतं भवेत् ।। ६८५ ॥
दशवां को कूपक, तथा पञ्जर कल्पना करें, मध्य में मौलिक्य जंघा मे जिनकाष्ठ को बांधते हैं॥६८०॥
उस में पोत को बांधते हैं तब कृप से संग होता है पर बाणाप्र में लगा हुआ हारिणीदोर कहलाता है ॥६८१।।
आठवां कुवार तथा नवमां पुष्प संज्ञक, श्रायु स्थान को आयु, और द्वादश को अन्त्य कल्पना करके फल का विचार करें ॥२॥
यदि बलबान ग्रह नवम एकादश भाव में हो तो धन का लाभ होता है और अष्टम, एकादश में हो तो दृष्ट से धन का लाभ होता है जहां पर पाप ग्रह हो वहां क्षय होता है और शुभग्रह जहां पर हो वहां शुभ होता है ।।६८३॥
सूर्याद ग्रह बलवान हो तो कम से मनुष्य दीक्षा, तापस, कपाली, मोक्ष, भगवान् यति, चरक, जैन, इन पक्षों को अबलम्बन करने वाले होते हैं ।
जितने बलवान् ग्रह प्रव्रज्यायोग कारक होते हैं उन के बल से फल का विचार करें। यदि एक ग्रह भी प्रव्रज्यायोग कारक हो तो उसी एक पक्ष का व्रत धारण करने वाला होता है ॥६८|| ___ 1. तापस for तापसाय Bh. 2. एकमावे for एकमवे Bh.