________________
(१२८) . प्रवज्येशे विनष्टे त व्रतं त्यजति मानवः । दीक्षेशे राहुयुत्तो तु व्रतगन्धोऽपि नो भवेत् ॥ ६८६ ॥ सबले सौम्यदृष्टे तु गुरुभक्ति ढा मता। नीचेत्र रदृष्टे तु व्रतेन सह नश्यति ॥ ६८७ ॥ जन्मराशिपतिर्मन्दै दृष्टः शेषेर्न वीक्षितः । अबलो यस्य संजातो रोगादीक्षां दधाति सः ॥ ६८८ ।। सौरिहीनाङ्गजन्मेशः केन्द्रे पश्यति सदलम् । यस्य स पुण्यसत्यक्ता भोज्यार्थी कुरुते व्रतम् ॥ ६८९ ॥
चन्द्रं शुमांशकस्थं बलिनं स्वोचस्थितं तथा शेषान् । पश्यति बलिनि शनी स्याजगदीशो दीक्षितः शान्तः॥ ६९०॥ एकगेहगतैः सर्वैर्जन्मेशो यत्र वीक्षितः ।
यदि प्रव्रज्या योगकारक नष्ट बल का हो तो मनुष्य अपने व्रत को त्याग कर देते हैं और वही दीक्षेश यदि राहु से युक्त हो तो मनुष्य को व्रत का स्पर्श भी नहीं रहता है ।।६८६॥
___यदि प्रव्रज्या योग कारक सबल हो और शुभ ग्रहों से देखे जाते हो तो दृढ़ गुरु की भक्ति करने वाले होते हैं और वह यदि नीच में हो पाप ग्रहों से देखे जाते हों सो व्रत के साथ ही नष्ट हो जाते है ॥६८७
जिस का जन्म गशीश शनि से देखा जाय और शेष ग्रह उमको न देखें तो वह प्रबल हो जाता है इस लिये वह मनुष्य रोग के कारण दीक्षा को ग्रहण करते हैं ॥६॥
जिसको अन्म लग्नेस से रहित केन्द्र को बलवान् शनि देखे वह पुस्म से व्यक्त होकर केवल भोजन के लिये व्रत को धारण करता है ॥६६।।
जिस को जन्म काल में उन का बलवान् चन्द्रमा शुभ ग्रहों के अंश में स्थित हो उसको और शेष ग्रहों को भी बलवान शनि यदि देखे तो वह भगवान का मन्त्र ग्रहण करता है और शान्त भी होता है n६६०॥
1. जन्मानहीनेश: for हीनाङ्गजन्मेशः A. A1 2. त्यक्तो for स्यता A.A, Bh. 3. शेषात Bh.