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( १०२ ) लमे मार्तण्डमन्दौ चेद् दृष्टौ हि क्षितिसूनुना । ससौम्ये शोतगौ दृष्टे प्रष्टुः सेनापतेर्वधः॥ ५४३॥ तुलायां पद्मिनीबन्धुत्रिंशांशे दशमे स्थितः । हन्ति राज्यं यथा लोमः समस्तगुणसञ्चितम् ।।५४४ ॥ राहुकालाननं चक्रं विज्ञाय स्थापितग्रहम् । जीवभावमृताभिख्ये बलं ज्ञात्वा रणं विशेत् ॥ ५४५ ॥ सिंहायेषु घटाद्यषु ज्ञात्वा ग्रहबलाधिकम् । स्थायियायिजयो वाच्यो युद्धप्रश्ने बलोत्कटात् ॥ ५४६॥ लग्ननाथे शुभैयुक्त शुक्र लाभ शुभैयुते ।। संग्रामे शस्त्रघातस्तु मृत्युयोगे च जीवति ॥ ५४७॥ अनाथे क्रूरगे लग्ने लाभ करयुते हते' । 'मटानां शस्त्रघातस्तु मार्यमाणोऽथ जीवति ॥ ५४८ ॥
_याद लग्न में सूर्य, और शनि, हों इन दोनों पर मंगल की दृष्टि हो, और शुभ ग्रहों के साथ चन्द्रमा पर, उप्तकी दृष्टि हो तो प्रभकर्ता के सेनापति का नाश होता है ।।५४३।।।
यदि सूर्य तुला राशि में, दशम त्रिंशांश में हो तो राज्य का नाश होता है, जैसे मनुष्य कितने भी गुणी हों उसमें एक लोभ जन्य दोष श्रा जाय तो सब गुणों को नष्ट कर देता है ॥५४४॥ .
और राहु कालानल चक्र को बनाकर उसमे ग्रहों को स्थापित करके उसमें जीवन, मरण इत्यादि भावों का बलाबल जान कर युद्ध में राजा को प्रवेश करना चाहिये ।।४।।
युद्ध के प्रश्न मे सिंह से छः राशि तथा कुम्भ से छः राशियों में प्रहों का बलाधिक्य देख कर स्थायी, यायी राजा को सेना की प्रबलता से जयाजय कहना चाहिये ।।५४६॥
यदि लग्नेश शुभ ग्रहों से युक्त हों और लाभ स्थान में शुभ प्रह से युक्त शुक्र हो तो युद्ध में शस्त्रादि प्रहारों से मृत्यु योग आने पर बच जात है ।।५४७॥
याद लमश के अतिरिक्त और पापग्रह लग्न में हो और लाभ स्थान पापग्रहों से युक्त तथा आहत हो तो भटों को शस्त्रादिक घात से मृत्युयोग पाने पर भी बच जाते हैं ॥५४८।। ____10सञ्चयः for सञ्चितम् Bh. 2. स्थापिते गृहे for स्थापितगृहम A, A1 B ऋरयुतैक्षिते Bh.