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( १०३ ) यदा मूर्ती मवेदाहुः पुरा प्रष्दुस्तदा वदेत् । शत्रुः शक्रोऽपि जेतव्यो बलपुष्टोऽपि पार्थिवः ॥ ५४९ ॥ कुम्मायेषु हि ये रास्ते शस्त्रनिहता धनैः। सिंहायेष्वपि ये रास्तेऽपि शस्त्रेण घातिताः ॥ ५५० ॥ कररनुजभावे तु भ्रातावश्यं प्रणश्यति । चतुर्थे मातुलातङ्कः सुते नश्यति पुत्रकः ॥ ५५१ ॥ षष्ठेश्वः सप्तमे भार्या छिद्रे घातो निजेऽङ्गाके । नवमे च गुरोर्षातो दशमे भूपतेर्वधः ।। ५५२ ।। यदि धुने भवेद्राहुस्तदा मृत्युद्धि जात्मनः । इति ग्रहबलं ज्ञात्वा युद्ध कार्य नरेश्वरैः ।। ५५३ ॥ यदा मूर्ती भवेत्ऋरो' युद्धप्रश्ने तदादिशेत् ।
अवश्यं मार्यते शत्रुः सबलोऽप्यबलात्मना ।। ५५४ ॥ ___ जब लग्न में राहु हो तो पहले प्रश्नकर्ता का इन्द्र के तुल्य बलवान राना भी शत्र हो तो उसको भी जीत लेते है॥५४६||
कुम्भादि छः राशियों में जितने पापग्रह होते हैं उतने ही यायी की सेना आदि शास्त्रादि से आघात होते हैं, और ऐसे सिंहादि छ: राशियों में जितने पापग्रह होवें उतने ही स्थायी की सेना शस्त्रादि से आघात हाते हैं॥५५॥
याद तृतीय भाव में कर ग्रह होवें तो भाई का अवश्य ही मरण होता है, और चतुर्थ में क्रूर ग्रह होवें तो मामा को आतङ्क होता है; यदि पञ्चम स्थान में पापग्रह हों तो पुत्र का नाश होता है ।।५५१।।
__ यदि षष्ठ स्थान में पापग्रह हों तो घोड़ों का और सप्तम में पाप ग्रह हों तो स्त्री का नाश होता है, और अष्टम स्थान में यदि पापग्रह हों तो अपने शरीर में ही घात होता है, और नवम में हों तो गुरु का तथा दशम में पापग्रह हों तो राजा का ही नाश होता है ॥५५२॥
यदि सप्तम में राहु हो तो द्विजों का नाश होता है । इस प्रकार प्रहों का विचार कर राजा लोग युद्ध करें ।।५५३।।
युद्ध के प्रश्न मे यदि लग्न में पापग्रह हो तो बहुत बलवान भी शत्रु अबल जैसे मारे जाते हैं ॥५४॥
1 राहुभवेन्मूतौ tor मूर्ती भवेद्राहुः 2. दिशेत for वदेत A. 3. ofástio for ofasit Bh. 4. t for i Bh.