________________
अथवा प्रकारान्तरमाह। सिंहादि मकरान्तं च मानुक्षेत्रमुदाहृतम् । कुम्भादि कर्कपर्यन्तं चन्द्रक्षेत्रसुदीरितम् ॥५३८॥ सूर्ये चन्द्रे च सूर्याङ्गसंश्रिते जयकांक्षिणाम् । यायिनां विजयो युद्ध स्थायिनों भङ्गमादिशेत् ॥५३९।। सूर्ये चन्द्रे व चन्द्रङ्क्ष संस्थिते युद्धवीरयोः । यातुर्मृत्युस्तदा प्रोक्तः स्थायी जयति संगरे ॥५४०॥ सूर्ये सूर्यांगसंयुक्त चन्द्र चन्द्राङ्गमाश्रिते । एवंयोगे भवेत्सन्धियुद्धं तस्य विपयये ॥५४१॥ कतर्यां यदि चन्द्राको संहारः सैन्ययोईयोः । निकटे निकटं युद्धं दूरे दूरञ्च पृच्छके ।।५४२॥
अब प्रकारान्तर से कहते हैं सिंह से, मकरपर्यन्त सूर्य का क्षेत्र है, और कुम्भ क पर्यन्त चन्द्रमा का क्षेत्र है, जैसे वृद्धों का वचन हैकएठीरवं विक्रमिणं विलोक्य स्वीयं पदं तत्र चकार सूर्यः । मंत्र्या तदासन्नतया कुलीरे निजं बबन्धालयमेणालक्ष्माः ॥१।। अन्ये प्रहा गृहयियासिषया क्रमेण शीतांशुतीग्ममहसोः सदन समीयुः । प्राप्तक्रमेण ददतुर्भवनानि तौ तु तारा ग्रहा द्विभवनास्तत एव जाताः ॥२॥५३८।।।
यदि सूर्य, और चन्द्रमा दोनों सूर्य के क्षेत्र में हो तो युद्ध मे यायी का जय होता है और स्थायी का भंग होता है ॥५३॥
और सूर्य, चन्द्रमा, दोनों चन्द्रमा के क्षेत्र में हों तो दोनों तरफ के वीरों में यायी का मरण होता है और स्थायी का युद्ध में जय होता है ।।५४०॥
यदि सूर्य सूर्य क्षेत्र में हो और चन्द्रमा चन्द्र क्षेत्र में हो तो दोनों राजाभों की परस्पर सन्धि हो जाती है ॥५४१।।
और चन्द्रमा, सूर्य, कर्सरी में हो तो दोनों सैन्य का नाश होता है यदि दोनों सन्निधि में हो तो प्रश्नकर्ता से समीप में ही युद्ध कहना चाहिये और दूर हों तो दूर में युद्ध कहना चाहिये ॥५४२॥