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( १०० ) सभौमे निधने मन्दे भंगो मूर्तिगते रवौ । इन्दौ व्ययायमूर्तिस्थे मसूर्ये वा वदेद् वधम् ॥५३२|| लग्नेशेऽभ्युदिते यायी युद्धे जयति तत्क्षणम् । उदिते सप्तमेशे च स्थायी जयति संगरे || ५३३॥ द्वयोः संहितयोः सन्धिर्जयो वा द्वितये भवेत् । लग्नेशेऽस्तमिते मृत्युर्यायिनः समरे स्मृतः || ५३४|| अस्तपेऽस्तमिते स्थातुर्युद्धे मृत्युस्तु शत्रुतः । लग्ने पष्टे जयो यातः स्थातुरस्तपतौ जयः || ५३५|| यत्रोदिता ग्रहाः पक्षे जयस्तत्र ध्रुवो भवेत् । एवं बलाबलं ज्ञात्वा जयाजयविनिश्वयः ||५३६|| लाभगैरथवोत्कृष्टेर्लाfभदैव बलोत्कटैः । शुभसंयोगबाहुल्ये वदेद्यद्धं महोदयम् ||५३७ ||
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यदि मंगल, शनि, दोनों अष्टम स्थान में हों और रवि तो राजाओं का भंग होता है और चन्द्रमा सूर्य के साथ एकादश या लग्न में हो तो वध होता है || ५३२||
और लग्नेश, यदि उदित हो तो यायी का उसी समय युद्ध में जय होता है और सप्तमेश, यदि उदित हो तो युद्ध में स्थायी का जय होता है ||५३३||
लग्न में हो यदि द्वादश,
यदि लग्नेश, सप्तमेश, दोनों साथ ही हों तो सन्धि होती है वा दोनों का जय होता है, और लग्नेश यदि अस्त हो तो युद्ध में यायी का मरण होता है || ५३४||
और सप्तमेश अस्त हो तो शत्रु से स्थायी को मृत्यु होती है, यदि लग्नेश पुष्ट हो तो यायी का जय होता है और सप्तमेश पुष्ट हो तो स्थायी का जय होता है ।।५३५।।
जिस पक्ष में ग्रह उदित हो उस पक्ष का अवश्य हो जय होता है. इस प्रकार बलाबल को देख कर जयाजय का निश्चय करें || ५३६ ||
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उत्कृष्ट अर्थात् बलवान शुभग्रह यदि लाभ स्थान में हो और लाभेश बहुत बलवान हो और शुभग्रह का विशेष रूप से संयोग हो तो युद्ध में महान् उदय कहना चाहिये || ५३७ ||
1. रुदितयो: for संहितयो: A A Bh 2. संगरे for समरे A. 3 शस्त्रत: for शत्रुतः Bh.