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जयावामिगुरौ लाभे व्यत्ययः सितवक्रयोः । अर्कार्किक्षितिजैस्त्रिस्थैः शुभैलग्नगतैर्जयः ॥५२७॥ कर्मण्यारे खावाये तृतीये रविपुत्रके ।। विधौ षष्ठे जयं प्रष्टुः शेषमतिगतैग्रहः ॥५२८॥ मूर्ती जीवे जयः क्ररे लाभे 'वियति वा स्थिते । कुजायोः षष्ठयोलग्नोन्मृतौ चन्द्रे व्यये जयः ॥५२९॥ लग्ने भंगः' कुजे मान्ये तथा मन्दविलोकिते । धने वा निधने" चन्द्र मृतौ सूर्ये पराजयः ॥५३०॥ कुजार्की भानुदृष्टौ चेद्राज्ञां भंगः मतस्तनौ । सुकृते पुत्रभावे च यमाकरिस्तथा'"भवेत् ।।५३१॥
यदि बृहस्पति. लाभ स्थान में हो तो जय की प्राप्ति होती है, और यदि शुक्र, मंगल, दोनों लाभ स्थान में हों तो पराजय होता है, और यदि रवि, शनि, मंगल, तृतीय में हों शुभग्रह लग्न में हो तो जय होता है ॥५२७||
मंगल, योद दशम भाव में हो, रवि एकादश में हो और शनि तृतीय में हो चन्द्रमा षष्ठ स्थान में हो, और शेष ग्रह लग्न में हो तो प्रश्न कर्ता का जय होता है ।।१२८१
यदि बृहस्पति लग्न में हा तो जय होता है और पापग्रह एकादश में वा दशम में स्थित हो और मंगल, शनि षष्ठ स्थान में हो लग्नेश, लग्न में और चन्द्रमा व्यय स्थान में हो तो जय होता है ।।५२६।।
यदि लग्न में मंगल वा शनि हो तथा उन पर शनि की दृष्टि हो सप्तम वा अष्टम भाव में चन्द्रमा हो तथा सूर्य लम में हो तो स्थायी का पराजय होता है ।।५३०॥
यदि मंगल, शनि, लग्न में हो और उन पर सूर्य की दृष्टि हो तो राजाओं का भंग होता है, और नवम, पञ्चम, भाव में शनि, सूर्य, मंगल, हो तो उसी प्रकार राजाओं का भंग होता है ।।५३१॥ _1 ०वाप्त for व्वाप्ति Bi.. 2. वियत्य for व्यत्ययः A. वियत्या सितचक्रयो: B, : रवावाव्ये Bh. 4 व्ययति for वियति Bh. 5. कुजाको for कुजार्योः Bh. 6. लग्नान्नूनों for लग्नोन्मूतों Bh. 7 मंदः for भंग: Bh. 8 सेन्दोः for मान्ये A, A1. कुजो मंदो for कुजे मान्य Bh. 9. वाप for वा नि० 1 10. यमाकारे fot यमारि ms.