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________________ ( 8 ) सप्तराज्यपदायस्थाः सौम्यस्थायिजयप्रदाः' । शीर्षोदये शुभयुक्ते शुभदृष्टे रणे जयः ।।५२१॥ जयाय लग्नपो मूर्ती प्रष्टुः परस्य वाऽस्तपः। धने लग्नानुसारेण वक्री वक्रफलाश्रयः ॥५२२॥ लग्नलग्नपयोर्मध्ये राज्येशो विजयप्रदः । केन्द्राधिपस्तु युक्तो वा लग्नेशः केन्द्रगोपि वा ॥५२३॥ मन्दे भौमे च मूर्तिस्थे पुत्रे जीवे पदे रवौ । आये सौम्येऽथवा व्योग्नि प्रष्ट्रविजयमादिशेत् ॥५२४॥ द्रव्यस्य विषयी दाता करे सप्तमभावगे। आकाशसंस्थिते सौम्ये यायी दत्त्वा धनं ब्रजेत् ॥५२५।। तुर्यगे ज्ञेऽष्टमे चन्द्रे शुक्रे च सप्तमे जयः । लग्नारिरन्ध्रगैः किं वा शुक्रजीवदिवाकरः ॥५२६॥ यदि सप्तम, नवम, दशम, एकादश, स्थान में शुभ ग्रह हो तो स्थायी राजा का जय होता है । युद्ध काल में यदि शीर्षोदय लम हो और वह शुभ ग्रह से युक्त तथा देखा जाता हो तो जय होता है ।।५२१॥ और लग्नेश, लग्न में हो तो प्रश्र का का जय होता है और सप्तमेश यदि सप्तम में हो तो दूसरे का जय होता है, ऐसे लग्न के अनुमार इस का विचार करें और वक्री ग्रह हो तो विपरीत फल होता है ।।५२२॥ यदि राज्येश लग्न, और लग्रेश, दोनों के मध्य में हो तो प्रश्न कर्ता का विजय होता है. और लग्नेश, यदि केन्द्राधिप से युक्त हो वा केन्द्र में हो तो भी प्रश्न कर्ता का विजय होता है ।।५२३॥ और शनि, मंगल. लग्न में हो, बृहस्पति पञ्चम स्थान में हो, और रवि, पदस्थान में हो और शुभ ग्रह एकादश, या दशम में हो तो प्रश्न का का विजय होता है ।।५२४|| यदि पापप्रह, सप्तम भाव में हो तो द्रव्य को देने वाला होता है। और यदि शुभ ग्रह, दशम भाव में स्थित हो तो यायी धन देकर चला जाय ।।५२५।। यदि बुध, चतुर्थ स्थान में और चन्द्रमा अष्टम स्थान में हो और शुक्र सप्तम में हों, वा शुक्र, बृहस्पति, रवि, क्रम से लग्न, षष्ठ, अष्टम, भाव में हो तो जय होता है ||५२६।। . 1. For this line A, Bh read : सप्तराज्योदये सौम्या: स्थायिनो विजयप्रदाः 2 बला० for लग्ना A, A.; Bh 3 लमशो Bh. 4. अयेषिणः Bh.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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