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( 8 ) रिफैकैकादशस्थाश्वेदेकः ऋग्रहो यदि । यायी तं नगरं हन्ति दुर्गाद्यमथ शोभनैः ॥५१६॥ लग्नतो यदि लाभस्थौ गुरुशुक्रौ रविबुधः । एक एव पुरेशस्य जयदो बरगो (१) न्यथा ॥५१७॥ मूर्तेस्त्रिपञ्चषष्ठस्थाः करा यायिजयावहाः । कर्मायव्ययलग्नस्था यायिनोऽपि जयावहाः ॥५१८॥ कुंभकर्कटमीनालिलग्नतर्ये रिभंगदाः । मूर्तियनगतैः सौम्यैर्जयः स्थातुरुदाहृतः ॥५१९॥ लग्नेशद्यनगे वश्यो गन्ता स्याद् व्यत्ययेऽपरः ।
यायो लग्नपतिश्चिन्त्यः स्थायी धनपतिस्तथा ॥५२०॥ ___यदि द्वादश एकादश, और लग्न में एक पापग्रह हो तो जय करने वाले उस नगर को नष्ट कर देते हैं और यदि इन स्थानों में शुभ ग्रह हों तो वह इस नगर को ग्रहण भी नहीं कर सकते ॥५१॥
यदि गुरु और शुक्र, लग्न मे लाभ स्थान में हों और रवि, बुध प्रथम स्थान में हों तो उम नगर वालों का जय होता है, और वे यदि दुष्ट स्थान में स्थित हों तो अन्यथा अर्थात् जय नहीं होता है ॥५१७।। ।
यदि पापग्रह लग्न से तृतीय. पञ्चम, षष्ठ स्थान में, स्थित हो तो जय करने वालों का जय होना है और यदि दशम, एकादश व्यय और और लम में, पाप ग्रह हो तो यायी को जय होता है ।।५१८॥
यदि लग्न और चतुर्थ स्थान में कुंभ, कर्क, मीन, वृश्चिक राशि हो तो शत्रु का नाश होता है, और यदि लग्न, सप्तम में शुभ ग्रह हो तो स्थायी राजा का जय होता है ॥५१॥
यदि लग्नेश सप्तम में हो तो यायी राजा स्थायी राजा के वशीभूत होते हैं, और यदि व्यत्यय अर्थात् सप्तमेश. लग्न में हो तो अन्यथा अर्थात् उम नगर के राजा यायी राजा के वशीभूत हो जाते हैं। यायी रामा के लिये लगेश का विचार करें और स्थायी के लिये सप्तमेश का विचार करें॥२०॥ __ 1. मूर्तिस्वपश्च० for मूर्तेस्त्रिपञ्च A. 2. स्थायि for यायि A,
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