________________
( ६ ) द्रेष्काणा दण्डपाशास्त्रधारिणः समराय च । क्रराक्रान्ता विशेषेण करवर्गगतास्तथा ॥५१०॥ अन्योन्यवर्गगाः क्ररास्त्वन्योऽन्यक्ररदर्शकाः । रौद्रं कुर्वन्ति संग्रामं शुमैः केन्द्रगतैर्नहि ॥५११॥ मृतिगे करवर्गस्थे क्षीणे चन्द्रे च संगरः । करयुक्त विशेषेण महायुद्धमुपप्लवः ॥५१२।। न्यूनाधिकत्वमालोक्य करत्वसबलत्वयोः । ग्रहाणामादितस्तज्ज्ञेस्ततो युद्धस्य निर्णयः ॥५१३॥ तृतीयगृहमारभ्य भावपटकं व्यवस्थितम् । नागगख्यं ततः षटकं परं स्याद्यायिसंज्ञितम् ॥५१४॥ नवमे गुरुशुक्रज्ञा जयदा नगरप्रभोः । भौमार्की भंगदौ सौम्याः बैंकर्षिस्था जयप्रदाः ॥५१५।।
यदि लग्न का द्रेष्काणा पापग्रहों से आक्रान्त हो या पापग्रह के वर्ग में हो तो दण्ड, पाशादि अस्त्रधारियों का युद्ध होता है ॥५१०॥
यदि पापग्रह परस्पर एक दूसरे के वर्ग में हों और पाप ग्रहों की परस्पर दृष्टि हो, शुभ ग्रह केन्द्र में नहीं हों तो बहुत कठिन युद्ध होता है॥५१शा
याद लग्न में पाप ग्रह के वर्ग में क्षीण चन्द्रमा हो तो युद्ध होता है और वह पापग्रह से युक्त हो तो महायुद्ध होता है ।।५१२।।
प्रहों के न्यूनत्व और अधिकत्व तथा करत्व और सबलत्व को पहले से देख कर तब उसको जानने वाले युद्ध का निर्णय करें ॥५१३।।
और तृतीय भाव से लेकर छः भाव तक नागराख्य अर्थात् नगर वालों का भाव कहलाता है उस के बल से नगर वालों का और दशम भाव से तृतीय पर्यन्त यायिसबक भाव कहलाता है उसके बलाबल से जय करने वालों का जय पराजय का विचार करें ॥५१४।।
यदि नवम भाव में बृहस्पति, शुक्र, और बुध हों तो उस नगर के राजा का जय होता है, और यदि नवम भाव में मंगल, शनि हो तो युद्ध में भंग होता है, और यदि शुभ ग्रह दशम, लग्न, और सप्तम में हो वो जय होता है ।।५१५।।
___1. केन्द्रगतेन हि for केन्द्रगतै ह A, A1. 2. परस्याव्या विसंक्षितम् for पर स्याद्यायिसंज्ञितम ms.