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सकरो वक्रितो वापि केन्द्रे युद्धाय मूर्तिपः । धनपोपि तथा चिन्त्यस्त्वेवं षष्ठगृहाधिपः ॥५०५।। अर्कादने चरे करे चन्द्रे वारिष्टगामिनि । युद्धं स्यात्सबलारब्धं महाक्रोधेन भूभुजाम् ॥५०६॥ रणाय प्रान्त्यगाः करा राहुकेत विशेषतः ।
अस्ते मूतौ ध्रुवं युद्धं वाच्यं बलद्वये ॥५०७॥ स्थिरे मूर्ती स्थिरांशे वा युद्धे नास्ति रणोदयः । सग्रहाग्रहयोगेन युद्धायुद्धं विचारयेत् ॥५०८॥ शुभैमूतों* शुभैरस्ते शुभैः केन्द्रे शुभेक्षिते । युदं न जायते क्षेमो भवेत्तत्र महीभृताम् ॥५०९॥
लग्नेश पापग्रह से युक्त हो और वक्री होकर केन्द्र में हो तो युद्ध होता है । इस प्रकार सममेश यदि पाप से सम्बन्ध करता हो और वक्री होकर केन्द्र में हो तो भी युद्ध होता है। इसी प्रकार षष्ठेश की स्थिति हो तो भी युद्ध होता है ॥५०॥
सूर्य से आगे घर राशि में पाप ग्रह हो और चन्द्रमा अनिष्ट स्थान में स्थित हो तो राजाओं का बड़े क्रोध के साथ, बहुत जोर से युद्ध होता है ।।५०६॥
याद द्वादश स्थान में पाप ग्रह हो तो युद्ध होता है और राहु, केतु हो तो विशेष युद्ध होता है और सप्रम में लग्न में पाप ग्रह हों तो निश्चय दोनों तरफ की सेनाओं में युद्ध होता है ।।५०७॥
यदि युद्ध काल में स्थिर राशि लग्न हो वा स्थिर राशि का नवमांश लग्न हो तो युद्ध नहीं होता । इस प्रकार प्रहों के संयोग तथा वियोग से युद्ध होगा या नहीं उसका विचार करें ।।५०८॥
यदि शुभ ग्रह लग्न में हो और शुभ ग्रह सप्तम स्थान में हो और शुभग्रह केन्द्र में हो और इन स्थानों पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो इस योग में युद्ध नहीं होता किन्तु राजाओं का कल्याण होता है ।।५०६॥
1. केत्वविशेषतः for ०केतू विशेषतः A. 2, करे चन्द्रे वारिष्ट गामिनी for Qरै युद्धं वाच्यं बलद्वये ms. 8. सग्रहो for सपहा ms, 4. मूतैः for मूर्ती A15. रस्तैः for स्ते A. 6. केन्द्रे for केन्द्रे ms. 7. तत्र क्षेमं भवति भूभृताम् for क्षेमो भवेत्तत्र महीभृताम्