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( ३ ) राजगेहे भृगौ तुंगे द्रव्यलामादि' गच्छतः। षष्ठे पुष्टे' गुरौ व्याधिरित्येवं मार्गवेष्टितम् ॥ ४९४ ॥ अष्टमे स्वगृहे सूर्ये शनिदृष्टेऽथवा युते । मंगले शीतगौ मार्गे शस्त्रैर्घातं तदादिशेत् ॥ ४९५ ॥ गुरो लग्नेऽथवा शुक्र शत्रुतस्करसंकटे । न प्रहारो न वा हानिवक्तव्या मार्गचारिणाम् ॥ ४९६ ॥ सप्तमे शीतगौ शुक्र मार्गेऽपि गच्छतां नृणाम् । स्त्रीसंभोगो भवेत् स्नेहान्मिथुनादिषु मूर्तितः ॥ ४९७ ॥ नो विश्रामश्चरे लग्ने द्वौ विश्रामौ स्थिरात्मके । विश्रामत्रितयं प्रोत्तं द्विस्वभावे विचक्षणः ॥ ४९८ ॥ वृषसिंहालिकुम्भेषु लग्नयातेषु गच्छतः । गमागमौ न वक्तव्यौ चरैरेवं द्वयं वदेत् ।। ४९९ ॥
इति सप्तमस्थाने गमागमप्रकरणम् । यदि शुक्र उच्च का हो तो जाते समय राजा के घर से बहुत द्रव्यादि का लाभ हो, और यदि षष्ठ भाव में पुष्ट बृहस्पति हो तो रास्ते में व्याधि हो ॥४४॥
यदि अष्टम भाव में सिंह का सूर्य हो और वह शनि से युत वा दृष्ट हो वा मंगल चन्द्रमा अष्टम में स्वगृही हों शनि से युत व दृष्ट हों तो रास्ते में उसका शस्त्र से घात हो ॥४६५।
यदि बृहस्पति वा शुक्र लग्न में हों तो शत्र और चौर से संकट होने पर भी उसको न तो प्रहार हो और हानि भी नहीं हो ॥४६६॥
..सप्तम में चन्द्रमा और शुक्र हो तो रास्ता जाते हुये भी प्रेम पूर्वक मथुनादि में स्त्री का सम्भोग हो ॥४६॥ " यदि प्रश्नकाल में चर लग्न हो तो रास्ते में विश्राम नहीं होता और स्थिर हो तो रास्ते में दो जगह, अगर द्विःस्वभाव हो तो तीन जगह विश्राम होता है ॥४६॥ .
यदि स्थिर लग्न में यात्रा करें तो आना आना नहीं होता और यदि चर लग्न में करें तो गमागम दोनों होते हैं ।।४६६।।
इति सप्तमस्थाने गमागमप्रकरणम् 1. लाभोऽपि for ०लाभादि A, A1. 2. पुत्रे for पुष्टे A. 8 मूर्तयः for मूर्वितः A, A1.