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( ६२ ) लमाद्वा लग्ननाथाद्वा यत्संख्ये सौम्यखेचराः । मार्गे तत्रोदयो वाच्यः शकुनाश्चापि शोभनाः ॥ ४८९ ॥ अष्टमे तरणौ मार्गे भयं वाच्यं कुजेऽपि वा । यावन्तोऽप्यष्टमे खेटाचौरास्तावन्त एव हि ॥ ४९० ॥ लग्ने धने तृतीये च सौम्ययुक्तेक्षितेपि च ।। तस्करोपद्रवौ नैव वक्तव्यो मार्गचारिणाम् ॥ ४९१ ॥ यत्र गुरुभवेद्दवो यत्र शुक्रो जलाश्रयः । प्रपातडागकूपादि वक्तव्यं गच्छतां पथि ॥ ४९२ ॥ चन्द्र शुक्र नदीमार्गे राहुशन्योर्महद्भयम् । नृपगेहे गुरौ तुंगे निधिलाभोऽपि भूपतेः ॥ ४९३ ।।
लन से वा लमेश से जितनी संख्या पर शुभ ग्रह पड़े हों प्रश्न काल से उतने ही दिनों में उसका उदय होता है और शुभ शकुन भी होते हैं ।।४८
अष्टम स्थान में यदि सूर्य तथा भौम हों तो मार्ग में मय कहना चाहिये, जिवने संख्यक ग्रह अष्टम मे स्थित होवें उतने संख्यक चौर से उपद्रव हो॥४६॥
__ यदि लन द्वितीय और तृतीय में शुभ प्रह का योग हो या शुभ प्रह देखते हों वो पथिक को रास्ते में चौर तथा उपद्रव का भय नहीं होगा ॥४६॥
जिसको प्रश्न काल में गुरु या शुक्र जलचर राशि में हो उसको रास्ते में जाते समय तालाब कूआं, इत्यादि जलाशय मिलें ॥४२॥
___ यदि चन्द्र और शुक्र, जलचर राशि में हों तो नदी के मार्ग से (अर्थात नोका या पोत पर यात्रा करे) जाय यदि राहु और शनि अक्षर राशि में हो तो महान् भय कहना चाहिये, और यदि बृहस्पति
का हो तो राजा के घर में हो तथा राजा से निधि का लाभ हो ||४६३||
1. शत्रुता० for शकुना० A. 2. पद्रवो for पद्रवो A. 3. वक्तव्यो for पयो A, 4. यदि for पथि A. Al.