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लग्नास्तयोर्द्वयोरङ्कास्तर्यस्यापि भवन्ति चेत्' ।
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दूराध्वानास्त्वविश्रामा ज्ञातव्याः स्वगृहान्तरे ॥ ४८३ ॥ स्वभावोऽविचारो वा मार्गे वक्रगविस्तथा । लग्ननाथस्य या दृग् स्यात् प्रचारः पथिकस्य सः ॥ ४८४ ॥ लग्नाद्वा लग्ननाथाद्वा यत्संख्ये क्रूर खेचराः । मार्गे हि गच्छतो गन्तुस्तत्रापि स्यादुपद्रवः || ४८५ ॥ द्यने नीचेऽथवा षष्ठे चन्द्रलग्नेश्वरो यदि । छिद्रनाथतौ मृत्युरिष्टापि प्रवासिनः ॥ ४८६ ॥ प्रश्ने पृष्टोदये लमे करें दृष्टे शुभे च्युतः । कोणकेन्द्रगतैर्वापि प्रवासी स्यादुपद्रुतः ॥ ४८७ ॥
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करयुक्त क्षितौ मन्दः सौम्येक्षा योगवर्जितः । धर्मस्थस्तनुते व्याधिं प्रोषितस्यागमो भवेत् || ४८८ ||
लग्न और सप्तम स्थान के श्रङ्क यदि चतुर्थ स्थान के भी हों दूर मार्ग चल कर आए हुए पुरुष को घर में विश्राम कहना चाहिये ||४८३ ||
लग्नेश प्रकृतिस्थ रहें वा किसी अन्य राशि में जाने वाले अथवा मार्गी वा वक्री रहें वैसी ही स्थिति उस पथिक की होती ह ||४८४||
लग्न वा लग्नेश से यत्संख्यक स्थान में पापग्रह हों, मार्ग पर चलते हुए उस पथिक का अनिष्ट कहना चाहिये ||४८५||
चन्द्रमा और लमेश सप्तम अथवा अपने नीच वा षष्ठ स्थान में रहे और अष्टमेश से संयोग रहे तो उस प्रवासी मनुष्य की मृत्यु कहनी चाहिये ||४८६ ।।
प्रश्नकाल म पृष्ठोदय राशि लग्न में हो, पाप ग्रहों की दृष्टि रहे, कोई भी शुभग्रह न रहे अथवा केन्द्र तथा त्रिकोण स्थान में शुभग्रहों से रहित हो तो पथिक को मार्ग में अनिष्ट कहना चाहिये ||४८७||
शनि धर्म स्थान मे हो और क्रूर ग्रहों से युक्त वा देखा जाय, शुभ ग्रह की दृष्टि अथवा योग न रहे तो वह पथिक रोगी होकर घर को लौट आवे ||४८८||
1. ये for चेत् ms. 2. दूराध्वनोऽथ for दूराध्वानास्त्व A. 3 प्रवासिनाम् for प्रवासिन: A. 4. कोणे for कोण ms. 5. रे forms.