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मदीयः पुत्रको देशे गत्वा तत्रैव संस्थितः । कदायातीति शङ्कायां पृच्छालग्नं निरीक्षयेत् ||४७७॥ चरे लग्ने चरांशे वा स्थिते चन्द्रे तदैव हि ।
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परदेशात्समभ्येति स्वाङ्कसंख्यैश्च यामिकैः ॥ ४७८ ॥ चन्द्रो वा धिषणो वापि भार्गवो वा बलाधिकः ।
यदि तुर्ये समभ्येति तदा गेहागतं वदेत् ।। ४७९ ॥
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प्रयाति सहजस्थानमसौ यस्याशुभग्रहः ।
आयाति पथिकस्तस्यामेव नाड्यां गृहान् प्रति ॥ ४८० ॥ चरोदये चरांशे वा सौम्या यान्ति बलोत्कटाः " । तदा जवात्समभ्येति दूरादप्यचिरादपि ॥ ४८१ ॥ मार्गे ह्यागच्छतः पुंसो विश्रामो ग्रहसंख्यया । सबलानि धनादीनि वाच्यं स्खलनकारणम् ।। ४८२ ॥
मेरा पुत्र परदेश में जाकर वहीं बैठ रहा है। वह कब आवेगा ऐसे प्रश्न में प्रश्न लग्न को देखना चाहिये ||४७७||
चर लग्न अथवा चर राशि के नवांशक में यदि चन्द्रमा रहे और शनि अपने स्थान में हो तो वह परदेश से शीघ्र ही लौट आता है ॥४७८ चन्द्रमा, गुरु वा शुक्र बली होकर यदि चतुर्थ स्थान में रहें तो वह घर में आ गया है इस प्रकार कहना चाहिये || ४७६ ॥
जिसकी प्रश्न कुण्डली में शुभग्रह तृतीय स्थान में रहें तो वह पत्रिक उसी समय घर को आ जाता है ||४८०
शुभ ग्रह चर लग्न वा श्वर राशि के नवांश में सबल हो कर रहें दूर से भी वह शीघ्र श्रा जाय ||४८१||
तो
मार्ग में आते हुए पुरुष के प्रहस्थितिद्वारा विश्राम, बल, धन और विलम्ब के कारण कहने चाहियें ||४८२ ॥
1. संख्यायां for शंकायां A. 2. संस्थेश्च for संख्येश्व A. 3. याम कैः Bh. 4. गृहं गत for गेहागदं A, A1. 6. यस्यां for यस्या A, A. यस् Bh. 6 बलाधिका: for बलोत्कटा: A, A1. 7. दूरादपि चिरादपि for दूरादप्यचिरादपि A. A1.