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स्थिरे गमागमौ न स्तः शनिजीवनिरीक्षिते । अस्थिरे भवतस्त्वेतौ शुभखेटविलोकितौ ॥४७२।। चन्द्रलग्नौ द्विदेहस्थौ चिरं वाच्यो गमागमौ । चरादिवर्गगौ युक्त्या वक्तव्यौ कालमात्रया ॥४७३॥ शुक्राकिबुधजीवानामेकोपि चरलग्नगः। गमनाय निवृत्तौ तु चेत् स्थिरलगमाश्रितः ॥४७४॥ प्रवृत्तिश्च निवृत्तिश्च स्थिता धर्मार्थभावयोः । तत्र वीक्ष्या बलाद्यैश्च गमागमनिबन्धनाः ॥४७५।। शीर्षोदये शुभा यात्रा सैव पृष्टोदयेऽन्यथा । मीनलग्नांशकैर्वापि यानं चक्रं च निष्फलम् ।।४७६।।
स्थिर लग्न रहे और शनि-गुरु की दृष्टि रहे तो आना-जाना नहीं होता। अस्थिर लग्न रहे और शुभ ग्रहों की दृष्टि रहे तो आना-जाना होता है ।। ४७२ ।।
__ चन्द्रमा ओर लग्न द्विस्वभाव राशि के हो तो आने जाने में विलम्ब कहना चाहिये । चर राशि के वर्ग में रहे तो युक्तिपूर्वक, काले के अनुमान से गमनागमन कहना चाहिये ।। ४७३ ।।
शक, शनि, बुध पार गुरु इनमे से कोई भी यदि चरलग्न में हा तो वह यात्रा के लिये प्रवृत्त होता है । वही यदि स्थिर लम में हो तो यात्रा नहीं कहनी चाहिये ॥ ४७४॥
गमन और आगमन दोनों धर्म और अर्थ भाव के ग्रहों का बला. बल देख कर कहने चाहिये ।। ४७५ ।।।
शार्पोदय वाले राशि लग्न रहें तो शुभ यात्रा, पृष्ठोदय वाले राशि लम रहें तो विपरीत अर्थात् अशुभ यात्रा, मीन लग्न का उदय रहे तो आना जाना निष्फल रहे ।।४७६।।
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