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(८) भौमे महानसे भूमौ सभयं सुरतं पुनः । शुक्रे च सजले स्थाने गीतनृत्यादिशालिनि ॥४५२॥ चन्द्र शुक्रे च वाप्यादौ स्तं प्रोक्तं सुखाश्रयम् । कुञ्जमध्ये बुधे तूर्ये रतं रम्यं कथादिभिः ॥४५३॥ शनौ राहौ च गर्तायां रवौ चतुष्पदाश्रयम् । एवं ग्रहानुमानेन रतस्वरूपमादिशेत् ।।४५४॥
इति सप्तमस्थाने द्वितीयं सुरतप्रकरणम् ॥
अथ परचकागममप्रकरणम् ॥ चरे लग्ने स्थिरे चन्द्रे समायाति रिपोर्बलम् । चरे चन्द्र स्थिरे लग्ने शत्रु याति भूपतिः॥४५५।। चन्द्रलग्नौ स्थिरस्थौ चेत् तदा याति रिपोर्बलम् । चन्द्रोदयादपि द्वयङ्गे शत्रुर्मार्गानिवर्तते ॥४५६।।
मंगल यदि सप्तम स्थान में रहें तो रसोई घर में समय मैथुन, शुक्र रहें तो जलाश्रयस्थान में जहां नृत्य, गीत आदि होते रहें मैथुन कहना चाहिये ॥ ४५२ ।।
___चन्द्र और शुक्र यदि सप्तमस्थान में रहें तो सुखदायक स्थानों में और यदि बुध चतुर्थ स्थान में रहे तो कथा आदि से युक्त तथा किसी कुछ में मथुन कहना चाहिये ॥ ४५३ ॥
शनि, राहु यदि उक्त स्थान में रहें तो गड्ढे में, रवि रहें तो गोशाला आदि में, इस तरह प्रहों की स्थिति के अनुसार मैथुन कहना चाहिये।। ४५४ ।।
चर राशि यदि लग्न में हो और चन्द्रमा स्थिर राशि में हो तो शत्रु की सेना आजाती है । चन्द्रमा यदि चर राशि में हो, लग्न स्थिर राशि का हो तो शत्र नहीं आता ।। ४५५ ।।
चन्द्र और लग्न दोनों स्थिर राशि के हों तो शत्रु की सेना भाजाय । चन्द्र और लग्न यदि द्विस्वभाव राशि में रहें तो शत्रु मार्ग से ही लौट जाय ।। ४५६ ॥
1. सुखावहम for सुखाश्रयम A. 2. पुख० for कुल A, A13. कथादिना for कथादिभिः A. 4. ग्रहानुभावेन for महानुमानेन A, A1 5. परलमस्थिते for परे लग्ने स्थिरे A.