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________________ (४) लमस्थाने बलाधिक्ये लामस्यापि ग्रहादिमिः। रोगी जीवति पूर्णापुर्वीतरोगो भवेदयम् ।।३९०॥ चन्द्रो लग्नपतिर्वापि पृष्टे मृत्यौ खलेक्षितः। दीर्घरोगी नरो वाच्यो वक्रिते लगनायके ॥३९१।। विनष्टे लग्नपे मृत्युः कंटके मृत्युनायके । गृध्रकोलोरगत्र्यंशरुदितैरपि पञ्चता ॥३९२॥ चतुरस्रे यदा चन्द्रः पापग्रहद्वयान्तरे । लमे षष्ठोदये बन्धौ करविद्धौ मृतौ मृतिः ॥३९॥ षष्ठ लो चरे केन्द्र शुभयुक्ते तदोदिते । कृतान्तव क्तूगो रोगी जीवत्येव सुवैद्यतः ॥३९४॥ इति षष्ठस्थाने रोगप्रकरणम् । अथ सर्वभावेभ्यो जायाप्रकरणं प्रधानं सप्तमभावे कथ्यते । ___ लमस्थान और लामस्थान में सबल प्रह यदि हों तो रोगी पूर्णायु और रोगरहित होकर जीता है ॥३६०॥ लमेश वा चन्द्र षष्ठ वा अष्टम स्थान में रहें और पाप ग्रहों से देखे जाय,और लम नायक यदि वक्री हो तो मनुष्य चिरकाल तक रोगी रहे ॥३६॥ लग्नेश यदि नष्ट हो, अष्टमेश यदि केन्द्र में हो तो त्र्यंशों के उदिव रहने पर भी, गीध सूअर अथवा सांप द्वारा मृत्यु समझनी चाहिये ॥३१२॥ चन्द्रमा यदि चौथे वा आठवें स्थान में हो तथा दो पापग्रहों के बीच में हो, लग्न, छठा, चौथा और आठवां पापग्रहों से विद्ध हो तो मृत्यु हो जाती है ।। ३६३ ॥ लग्न वा छठे गृहों में चर प्रह हों, केन्द्रस्थान शुभ तथा उदित ग्रहों से युक्त हों तो यमराज के मुख में पड़ा हुआ भी रोगी सद्य के द्वारा बचा ही रहेगा ।। ३६४॥ 1 षष्ठे for पृष्ठे Bh. 2. For this line A reads. गृध्रगोलोरगस्त्रयशोरुदितौरपि पंचता ॥ ०कोलोरगत्र्यांशे Bh. 3. A, AI read पृष्ठे for षष्ठे - -
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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