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अमुकमौषधं भव्यमिति प्रभे च लग्नतः ।
लग्नं वैद्यः सुखं रोगी व्याधिस्तत्र च सप्तमम् ||३८४|| औषधं दशमं प्रोक्तं तच ज्ञेयं शुभाशुभम् । वैद्योषधी' बलाधिक्ये बलत्वे रोगरोगिणोः || ३८५|| रोगी जीवति निर्विघ्नं विपरीते विपर्ययः । वैद्यस्य रोगिणोमैत्र्यं मैत्र्यमोषधरोगिणोः || ३८६ ॥ लग्नस्य सबलत्वे च केन्द्रे सौम्यग्रहेषु च । उच्चस्थेऽपि त्रिकोणे च रोगी जीवति मानवः ||३८७|| अष्टमे च रवौ लग्ने' चन्द्रे तत्र जलाद् भवेत् । सन्निपातात्कुजे वाच्या बुधैः स्याज्ज्वरतो मृतिः ||३८८|| अजीर्णाद्विषणात्प्रोक्ता तृषः शुक्रात्पुनर्मृतिः । बुभुक्षातः शनैर्वाच्या निश्चितं रोगिणः पुनः || ३८९ ||
यह औषध अच्छा होगा वा नहीं ऐसे प्रश्न में वैद्य को लम, रोगी को चतुर्थ और व्याधि को सप्तम और औषध को दशम स्थान समझ कर शुभाशुभ का निर्याय करना चाहिये । वैद्य, औषधस्थान यदि सबल होवें, रोग और रोगी के स्थान यदि निर्बल हों तो अवश्य रोगी जीवे अन्यथा उसकी मृत्यु हो । वैद्य और रोगी तथा औषध और रोगी की परस्पर मैत्री कही गयी है ।। ३८४-३८६ ।।
लन सबल रहे और शुभ ग्रह केन्द्रस्थान में रहें वा उच्च में रहें वा नवम, पञ्चम में रहें तो रोगी अवश्य जीवित रहता है ||३८७॥
अष्टम स्थान में रवि, लग्न में चन्द्र रहे वो जल से, मंगल लग्न में रहे तो सन्निपात से, बुध रहे तो ज्वर से मृत्यु होवे ॥३८८||
अष्टम स्थान में गुरु रहे तो अजीर्ण से, शुक्र रहे तो प्यास से, शनि रहे तो भूख से रोगी को निश्चय ही मृत्यु कहनी चाहिये || ३६६ ||
1, दशममौषधप्रोक्तं for ओषधं दशमं प्रोक्तम् A, A 2. ०षध्यो for oषधी 3. रोगिणाम् for रोगिणो: A. 4. ०मैत्र्यं Bh. 6. The text reads केन्द्र for केन्द्रे खौलने A, A1.
भैंत्र्यां for ara for