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________________ ( ५ ) मनष्टिकापाकः पटो यत्र रविभवेत् । 2 यत्र सौम्यग्रहश्रेणिट्टाली' तत्र कोणके ||३३७ || लग्नस्य तुके ग्रामो रक्ष्यते च शुभग्रहैः । तृतीये तुर्यसंस्थैरिति ग्रामोऽतिवकः ||३३८ || यत्र कोणे शुभाः खेटा एकराशिगताः " पुनः । पुरस्य तत्र कोणे स्यात्सौवर्णी कलशावलिः ||३३९ ॥ यावन्तोऽप्यंशका मुक्ता लग्नस्याभ्युदितस्य ते । तावद् हस्तप्रमाणोऽयं वप्रो भवति निश्चितम् ||३४०|| यत्र विचे च धीभागे शुक्रो भवेद्रलाधिकः । तत्र ग्रामे पुरे वापि निधिर्भवति निश्चितम् || ३४१ ॥ जहां पर पुष्ट रवि हो उस दिशा में पका हुआ ईटा कहना चाहिये । और जिस कोने में पुष्ट शुभ ग्रह होवें उस कोने में सुन्दर पक्के मकान होने चाहिये ॥ ३३७ ॥ i लग्न के चौथे स्थान में यदि शुभ ग्रह हों तो गांव सुरक्षित रहें तीसरे, चौथे, पांचवें में रहें तो गांव में अधिक वप्रस्थान कहने चाहिये || ३३८ ॥ जिस कोने में शुभ ग्रह एक राशिस्थ होकर रहें उस गांव के उस कोने में सुवर्ण के कलश होवें ॥ ३३६ ॥ प्रश्नलग्न के जितने अंश बीत चुके हों उतने हाथ का वप्र निश्चय ही कहना चाहिये || ३४० ॥ जिसमें धनस्थान और धर्मस्थान में बली होकर शुक्र रहे उस ग्राम अथवा नगर में निश्चय ही धन होता है ।। ३४१ ।। 1. श्रेणि for श्रेणी A. 2, हट्टी for इट्टाली A, A'. 3. शुभम है: for शुभ है: A, A1. 4. The text reads मामे A1. 6. the text reads तयाः for गता: । The portion beginning with मे and ending with करोत्यहो ( P. 72 ) is missing in Bh. 6. लग्नस्था for लग्नस्या A. 7. The text reads बागे for मामे
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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