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( E) क्रियते केवलादर्शः' परसिलिं' काशकृत् । श्रीमदेवेन्द्र शिष्येण श्रीहेमप्रभसूरिणा ॥३४२॥
इति चतुर्थभावे तृतीयं प्रामप्रकरणम् ।
अथ पुत्रप्रकरणम् पत्रो वा पत्रिका वापि पत्नी गर्ने भविष्यति इति प्रश्नेषु विज्ञेयौ पञ्चमेशविलग्नपौ ॥३४३।। लमेशपंचमेशौ चेत् नरराशिव्यवस्थितौ ।। तदा पुत्रः समादेश्यः स्त्रीराशौ स्त्रीपदौ च तौ ॥३४४॥ अयुग्लनस्थिते मन्दे पुत्रजन्म मतं सताम् । समलने समांशे वा पुत्रीजन्म स्फुटं भवेत् ॥३४५।। एतस्याः प्रसकः कस्मिन् काले किल भविष्यति । लगाशकास्तु यावन्तः पृच्छाकाले तदोदिताः ॥३४६॥ गर्मोत्पनशिशोर्वाच्या मासस्तावन्त एव हि । अभुक्तास्तेऽत्र ये वांशास्तावन्त एव शेषकाः ॥३४७॥
श्रीदेवेन्द्र शिष्य श्रीहेमप्रभसूरि नं नगरसिद्धि पर प्रकाश डालने वाले एकमात्र प्रादर्शरूप इस प्रन्थ की रचना की ।। ३४२ ।।
गर्म में पुत्र होगा वा कन्या होगी इस प्रश्न में पत्रमेश और नमेश को जानना चाहिये ।। ३४३ ।।
लग्नेश वा पश्चमेश यदि नर राशि में रहें तो बालक, स्त्री राशि में रहे तो कन्या कहनी चाहिये ।। ३४४ ।।
विषमराशि लग्न हो और उस में शनि पड़ा हो तो पुत्र जन्म पौर ममराशि लम हो तथा समनवांशक हो तो कन्या जन्म काइना चाहिये ।। ३४५ ॥
इस स्त्री को प्रसव कब होगा ऐसे प्रश्न में प्रश्नकाल में लग्न के जितने अंश उदित हुए हों उसने गर्भ के गत मास कहने चाहियें ॥३४६।।
और जितने अंश भुक्त न हों अर्थात शेष बचे हों उसने हो मास प्रसवोत्पत्ति के कहने चाहिये ॥ ३४७॥
1. The text reads लोक: for दर्श: 2. प्रश्ने दुयो for प्रश्नेषु विज्ञया A, A .. प्रो tor पदो A. 4. सतां मतम् tor मरसताम A... The text reads गमेत्यत्र शिशो वाच्या for गोल्पन्नशियोर्वाच्या A.