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________________ तृतीयतुर्ययोलग्नात्पशमे च शुमा ग्रहाः । तत्र वो गुरुवाच्यः स्वोच्चस्थः पुनरुचकैः ॥३३१॥ शुक्लेन्दु' कंटके यत्र पानीयं तत्र निश्चितम् । शुक्रन्दु सकुजौ यत्र तत्रोधानं जलाश्रयम् ॥३३२॥ वृत है भवेत्वृत्तं त्र्यव्यस्रो गढो मतः। चतुरश्चतुष्कोणे पुरे वो भवेत्पुनः ॥३३३॥ लमं सौम्यग्रहैदृष्टं समृद्धं पुग्मुच्यते । अथ करग्रहेष्टं दुःस्थं भवति पत्तनम् ॥३३४॥ यत्र गुरुर्मवेचत्र रम्यं देवगृहेः पुरम् । शुक्रन्दु यत्र कोणे तु तत्र कूपादिके जलम् ।।३३५।। यत्र मौमो द्रमस्तत्र स्यादधे वेष्टकागणः । यत्र राहुशनी कोणे तत्र गर्ताः सपुञ्जकाः ॥३३६॥ लम से नीमरे, चथे, पानवें स्थान में यदि शुभ ग्रह हों तो एक पर इस गांव में अवश्य करें, यदि वे जन्म के हों तो विशाल वप्र कहें॥३३१।। केन्द्रस्थान में यदि शक और चन्द्रमा रहें तो वहां जल अवश्य रहे और जहां पर शुक्र चन्द्र मंगल के माथ हों तो जलाश्रित एक बाग भी कहना चाहिये ॥ ३३२॥ फेन्द्रस्थान में यदि दो प्रह एक साथ पड़े हों तो नगरे में दो मर्त. तीन प्रहों से तीन गर्त और चार प्रहों से चारों कोनों में वप्र कहना चाहिये ।। ३३३ ।। ___ लम यदि शुभ प्रहों से देखा जाय तो वह नगर समृद्धिशाली कहना चाहिये । पापग्रहों की दृष्टि रहने पर दुरवस्था को प्राप्त कहना चाहिये ॥ ३३४॥ लन को देखने वाला यदि गुरु हो तो मन्दिरों से युक्त नगर कहना चाहिये । शुक्र और चन्द्र जिस कोगा में रहें उस कोण में कूप आदि अल कहना चाहिये ।। ३३५ ॥ मंगल चक्र में जिस दिशा में हो उस दिशा में वृक्ष कहना चाहिये । और बुध जिधर हो उस तरफ इटों का पुल कहना चाहिये और राष्ट्र शनि जहां पर हों उस कोने में गढढे होंगे ।। ३३६ ॥ 1. गुन्दु Bh. 2. The text reads का प्र for वो which is incorrect. 3. The text reads निटका for वेटका : '
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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