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________________ (er) शुक्रे गुरौ निधिस्थाने बुधे चन्द्रे च लागे । शालिमोज्यं समं वस्त्रैलैभ्यते पुण्यवेश्मनि ॥३१५॥ उच्च गेहे निधिस्थाने बुधे गुरौ बलोत्कटे । स्युः 1 स्वर्णवस्त्रभोज्यानि चन्द्रे शुक्रे च लाभगे || ३१६ ॥ गुरौ तुर्ये समंगल्यं धृतोत्साहं सितेऽपि च । वर्द्धापनविवाहादौ स्नेहभोज्यं सगीतकम् || ३१७ || लग्ने पष्टे स्वके गेहे धने पष्टे धनाद्भवेत् । तृतीये निजभगिनीभ्यः पितृभ्यस्तुर्यवेश्मनि ॥ ३१८ || पञ्चमे पत्रपौत्रेभ्यः षष्ठे च शत्रवेश्मनि । सप्तमे निजपत्नीभ्यः स्नेहातिशयभोजनम् || ३१९ ॥ नवमे च प्रपास दशमे भूपवेश्मनि । लाभेऽप्यश्वगजादीनां लाभेन सहितं बहु || ३२०॥ शुक, और गुरु निधिस्थान में हों, बुध और चन्द्र लाभस्थान में हों तो वस्त्रों के साथ चावलों का भोजन किसी पुण्यवान के घर में मिले ॥ ३१५ ।। निस्थान में उच्च का सबल गुरु और बुध रहें. चन्द्र और Teresa स्थान में हों तो सुवर्ण, वस्त्र और भोजन सभी मिलें || ३१६ || चतुर्थ स्थान में गुरु वा शुक्र रहे तो बधाई, विवाह आदि कार्बो में मंगलाचार उत्साह और गीत के साथ घृतादियुक्त भोजन प्राप्त होता है ।। ३१७ ।। लस्थान यदि पुष्ट रहें तो अपने घर में धनस्थान के पुष्ट रहने से धन से, तृतीय स्थान के पुष्ट रहने से अपनी बहिनों से, चतुर्थ स्थान पुष्ट रहने से पिता के घर मे भोजन मिले || ३१८ ॥ के पञ्चम स्थान पुष्ट रहने से पुत्र पौत्रादि से, षष्ठ स्थान के रहने से शत्रु से, सप्तम के पुष्ट रहने पर स्त्री से स्नेहपूर्वक भोजन मिले || ३९६ ॥ नवम स्थान के पुष्ट रहने पर किसी सराय की दुकान पर, दशम स्थान की पुष्टि में किसी राजा के घर में और एकादश यदि पुष्ट रहे तो बोड़ा, हाथी के साथ सुन्दर भोजन मिले || ३२० ॥ 1. भग्नीभ्यः for भगिनीभ्यः A 2 मंत्र for सत्रे A. 3. गजानां तु for oगजादीना A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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