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________________ तृतीयकादशे दृष्ट्वा' पलीनां स्नेहभोजनम् । चतुर्थाष्टमदृष्टया तु स्वजनानां गृहे लभेत् ॥३२॥ नवपञ्चमदृष्टयापि स्नेहेन भोजनं जनात् । सप्तमौमयदृष्टया तु वैरेण सहितं जयेत् ॥३२२॥ सौम्येषु तुर्यसंस्थेषु तुंगगेहे वने मतम् । करेषु तत्र संस्थेषु भनवेश्मनि भोजनम् ॥३२३॥ तुर्ये गेहाकमानेन भोज्यमानं हैः स्मृतम् । लमन्यांकमानेन कबोलकमितिमता ॥३२४॥ लमचक्रं महास्थानं हृदि' ध्यात्वातिवतुलम् । तत्र ग्रहेदिशो वाच्या व्यञ्जनानां यथाक्रमम् ॥३२५॥ लग्नेश. और चतुर्थेश को परम्पर तृतीय. एकादश'दृष्टि हो तो स्त्री का प्रेम पूर्वक दिया हुआ भोजन मिलता है । और दोनों को चतुर्य अष्टम, दृष्टि परस्पर रहे नो अपने लोगों के घर में भोजन मिलता है ॥३२१॥ . दोनों को नवम और पञ्चम की यदि दृष्टि रहे तो स्नेहपूर्वक भोजन मिले । और दोनों को परम्पर सप्तम की दृष्टि होने से शत्रुता होने पर भी विजय कहनी चाहिये ।। ३२२ ॥ शुभग्रह यदि चतुर्थ स्थान में हो तो उच्च गृह में बा बन में भोजन मिलता है । यदि पापग्रह उस में रहें तो टूटे फूटे घर में भोजन मिले॥३२३॥ चतुर्थ वा लग्न स्थान से ग्रहों के द्वारा भोजन का विचार किया गया है। लग्न और चतुर्थ ही स्थान से व्यञ्जनादि का भी विचार करना पाहिये ।। ३२४॥ गोलाकार, विशालस्वरूप लग्नचक्र को हृदय में.ध्यान करके ग्रहों के द्वारा व्यञ्जनों (शाकादियों ) की दिशाओं का निश्चय करना पाहिये ।। ३२५ ॥ ___1. दृष्टया for दृष्ट्वा A. 2. The text reads च: for तु A.. ३. तुंगगेहेशनं० A, A'० दनं for बने Bh 4. गृहै: for प्रहैः Bh. 6. काचोलक० for कवोलक Bh:: स्थालं tor स्थानं 7. The text reads दृदि A, A1. 8. वाच्यं for वाच्या A1 . . .
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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