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________________ अम्लरसं.सिते स्निग्ध पेयः स्वाधरसाश्रयम् । आकर्णान्तसुविश्रान्तनेत्राभिः परिवेषितम् ॥३०९॥ नीचे शुक्र कदन्नं तु पक्वापक्वं जलाक्लिम् । अप्रतिपचिनिःस्नेहं दासीभिः परिवेषितम् ॥३१०॥ क्षिप्रादिविसं रूक्षं पल्लचणककोद्भवम् । सतलं चाप्यतेलं का शनी भोज्यं भवेदिदम् ॥३१॥ उच्चे रवौ मवेदुष्णं तिक्तं च राजवेश्मनि । नीचे नीचान्तरैर्वाच्यं भोजनं पृच्छवेश्मनि ॥३१२॥ सकृद्रोज्यं चरे लमे द्विरं च स्थिरात्मकम् । भोजनात्रतयं प्रोक्तं द्विस्वभावे विधौ निधौ ॥३१३॥ शुक्र चन्द्रे गुरौ तुयें पृच्छालने सगौरवम् । शालिभोज्यं हविःस्पृष्टं रम्यस्त्रीपरिवेषितम् ॥३१४।। . शुक चतुर्थ स्थान में हो तो खट्टा रस और कोमल सुस्वादु जल विशाल नेत्र वाली स्त्रियों से दिया हुआ मिले ।। ३०६ ।। शुक्र यदि नीच स्थान में हो तो कच्चा पका अन्न, मलिन जल से बुक और वह भी अनादर के साथ दासियों से परोसा हुआ प्राप्त हो ।। ३१०॥ शनि चतुर्थ स्थान में यदि हो तो रूखा, विरस चना, तेल से युक्त अथवा अयुक्त भोज्यरूप में मिलना चाहिये ।। ३११ ॥ रवि यदि उसका हो भोजन गर्म और तिक्त राजाओं के घर में मिले । वही यदि नीच घर का हो तो नीच जनों के घर में कहना पाहिये ।। ३१२॥ घर लम रहे तो एक बार भोजन मिले, स्थिर लग्न रहने से दो वार, द्विस्वभाव लम हो और चतुर्थ चन्द्रमा रहे तो तीन बार भोजन मिले ।। ३१३॥ शुक्र, चन्द्र वा गुरु लम्र में हों व चतुर्थ स्थान में हों तो भोजन सम्मानपूर्वक, घृत से मिश्रित और सुन्दर स्त्री से परोसा था मिले ॥ ३१४॥ 1. रूक्षवल्लवणककोद्रवम् for रूहं पल्ल चणककोद्भवम् A, AI. Bh. 2. दुस्थ. for पृच्छ० Bh. 3. तुष्ट for स्पृष्ट A., Bh:
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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