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आधावस्था गतास्तुङ्गा राज्यमाधवयोगतम् । मध्यावस्थागतास्तुङ्गा यौवने राज्यदाः स्मृताः ॥२४८|| अन्त्यावस्थागतास्तुङ्गा वाईके राज्यदा मताः । आद्यावस्थास्थिताःकरा बाल्ये दारिद्रयदाः स्मृताः ॥२४९॥ मध्यावस्था यदाक्ररा यौवने दौःल्यदायकाः । अन्त्यावस्थागताः करा अन्ते ' वयसि दुःखदाः॥२५०॥ एवं ग्रहानुमानेन सुखदुःखं सतां भवेत् । यस्मिन् वयसि तुङ्गाश्चेन्मुदिताः सौख्यसंयुताः ॥२५१।। तत्र राज्यं मुखं लक्ष्मीस्तेजो भवति निश्चितम् । यस्मिन् वयसि मन्दाः स्युः करदृष्टा विरश्मिकाः ॥२५२॥
यदि श्राद्य अवस्था में उच्च के ग्रह रहे तो बाल्य अवस्था में ही गज्यप्राप्ति होती है । यदि वे मध्यावस्था में उच्च के हों तो युवावस्था में राज्यप्रद होंगे॥२४॥
यदि अन्त्योवस्था में उच्च ग्रह हों तो वृद्धावस्था में राज्यप्राप्ति होती है। प्राद्यावस्था में यदि क्रूर ग्रह हों तो बाल्यकाल में उसे दरिद्र कहना चाहिये ।।२४६।।
मध्यावस्था में यदि पापग्रह हो तो उस पुरुष की यौवनावस्था में दुःख देने वाले होते हैं । अन्त्यावस्था में यदि पापमह हों तो बुढ़ापे में भी दुःख देने वाले होते हैं ॥२५॥
इस प्रकार ग्रह स्थिति के अनुसार सुग्व दुग्व सदा कहना चाहिये । मिस किसी भी अवस्था में उच्च के ग्रह हों उम अवस्था में प्रसन्न एवं सुखपूर्ण हों ॥२५||
उस समय मनुष्य को राज्य, सुख, लक्ष्मी, तेज आदि निश्चय से होते हैं। जिस अवस्था में स्वयं भी पापग्रह अन्य पापग्रहों से देखे आय तथा सूर्य में प्रवेश कर जांय ॥२५॥
1. वयोचितम् for वयोगतम् A. 2. स्मृता: for मसा: A. 3. गताः for यदा A 4. दौस्थ्य tor दोःख्य A.5. मन्दास्त्वन्ये A 6. सुखं for सुख A. 7. सदा for सतां A. 8. सौम्य for सौख्य A. 9. विरस्मिता: for विरश्मिकाः Amb.